जेल से रिहाई

जेल से रिहाई

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यहाँ तसवीर में ये लोग कितने खुश नज़र आ रहे हैं। और क्यों न हों, एक स्वर्गदूत उन्हें जेल से जो छुड़ा रहा है। देखिए, वह स्वर्गदूत उनके लिए जेल का दरवाज़ा खोले खड़ा है। ये सारे लोग यीशु के चेले हैं। लेकिन उन्हें जेल में क्यों बंद किया गया? आइए इसके पीछे की कहानी जानें।

याद है, पिछली कहानी में हमने देखा था कि यीशु के चेलों पर पवित्र शक्‍ति उँडेली गयी। उसके बाद, एक दिन दोपहर को पतरस और यूहन्‍ना यरूशलेम के मंदिर गए। वहाँ मंदिर के दरवाज़े पर एक अपाहिज आदमी बैठा हुआ था। वह बचपन से चल-फिर नहीं सकता था। कुछ लोग उसे रोज़ वहाँ लाकर बैठा देते थे, ताकि वह आने-जानेवालों से भीख माँग सके। जब उस आदमी ने पतरस और यूहन्‍ना को देखा, तो वह उनसे भीख माँगने लगा। जानते हैं तब प्रेरितों ने क्या किया?

उन्होंने रुककर उसे देखा। उन्हें उस बेचारे पर तरस आया। पतरस ने उससे कहा: ‘मेरे पास पैसे तो नहीं हैं। लेकिन जो है, वह मैं तुम्हें ज़रूर दूँगा। यीशु के नाम से खड़े हो जाओ और चलो-फिरो!’ फिर पतरस ने उस आदमी का दायाँ हाथ पकड़कर उसे उठाया। वह तुरंत उठ गया और चलने लगा। जब लोगों ने यह देखा, तो उन्हें बड़ा ताज्जुब हुआ और वे खुश भी हुए।

इसके बाद पतरस ने कहा: ‘हमने यह चमत्कार अपनी ताकत से नहीं, बल्कि उस परमेश्‍वर की ताकत से किया है, जिसने यीशु को ज़िंदा किया।’ वह और यूहन्‍ना लोगों से यह कह ही रहे थे कि तभी वहाँ कुछ धर्म-गुरु आ धमके। वे पतरस और यूहन्‍ना पर बहुत गुस्सा हुए, क्योंकि वे लोगों से यीशु के ज़िंदा होने की बात कर रहे थे। इसलिए उन्होंने पतरस और यूहन्‍ना को पकड़कर जेल में डाल दिया।

अगले दिन धर्म-गुरुओं की एक बड़ी सभा रखी गयी। उस सभा में पतरस, यूहन्‍ना और उस आदमी को हाज़िर किया गया, जिसे उन्होंने ठीक किया था। धर्म-गुरुओं ने पतरस और यूहन्‍ना से पूछा: ‘तुमने किसकी ताकत से यह चमत्कार किया?’

पतरस ने उनसे कहा: ‘हमने यह चमत्कार उस परमेश्‍वर की ताकत से किया है, जिसने यीशु को ज़िंदा किया।’ धर्म-गुरुओं की समझ में नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें। क्योंकि वे यह तो नहीं कह सकते थे कि चमत्कार हुआ ही नहीं। उन्होंने प्रेरितों को खबरदार किया कि वे आइंदा यीशु के बारे में बात न करें। फिर उन्होंने प्रेरितों को छोड़ दिया।

लेकिन प्रेरितों ने यीशु के बारे में बताना और बीमारों को ठीक करना बंद नहीं किया। उनके इन चमत्कारों की गली-गली में चर्चा होने लगी। यरूशलेम के आस-पास के शहरों से भी लोग बीमारों को प्रेरितों के पास लाने लगे, ताकि वे बीमारों को ठीक कर दें। यह देखकर धर्म-गुरु अंदर-ही-अंदर जलने लगे। इसलिए उन्होंने प्रेरितों को पकड़कर जेल में डाल दिया। लेकिन प्रेरितों को जेल में ज़्यादा देर नहीं रहना पड़ा।

रात को परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत ने आकर जेल का दरवाज़ा खोल दिया, जैसा कि आप यहाँ देख सकते हैं। स्वर्गदूत ने प्रेरितों से कहा: ‘जाओ, जाकर मंदिर में लोगों को प्रचार करते रहो।’ अगली सुबह धर्म-गुरुओं ने अपने आदमियों से कहा कि वे प्रेरितों को उनके सामने हाज़िर करें। जब वे लोग जेल पहुँचे, तो देखा कि प्रेरित वहाँ नहीं हैं। बाद में धर्म-गुरुओं ने उन्हें मंदिर में लोगों को सिखाते हुए पाया। वे उन्हें पकड़कर उस हॉल में ले गए, जहाँ सभी धर्म-गुरु इकट्ठा होते थे।

धर्म-गुरुओं ने प्रेरितों से कहा: ‘हमने तुम्हें यीशु के बारे में सिखाने से मना किया था ना? फिर भी तुम पूरे यरूशलेम में लोगों को सिखाते फिरते हो।’ इस पर प्रेरितों ने उन्हें जवाब दिया: ‘इंसानों से बढ़कर हमें परमेश्‍वर का कहा मानना है।’ प्रेरित, लोगों को “सुसमाचार” सुनाते रहे। क्या हमें भी उनकी मिसाल पर नहीं चलना चाहिए?