अध्याय -2 (Continue)

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पापी हो चाहे मानव निशदिन डूबे वो काम |
शुद्ध होंगें दुरा चारी और खल तमाम ||
06
सब पापों का शोध, करे परम मुक्ति प्रदान |
और करे शिव सन्तोष यह यज्ञ का ज्ञान ||
07
तृष्णा से हो आकुल या हो सत्य विहीन |
मातपिता के विदुषक दम्भी हिंसक निशदिन ||
08
अपने वर्ण आश्रम धर्म रहित हो जो मत्सर |
कलि में भी इस ज्ञान यज्ञ से वो जायें तर ||