सुनहरा पंख

सुनहरा पंख

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एक दिन सम्राट अकबर के दरबार में एक वन रक्षक एक अत्यंत सुंदर मोर का पंख लेकर आया।
वह पंख सूरज की रोशनी में चमक रहा था — नीला, हरा, और सुनहरे रंगों की आभा के साथ।
सभी दरबारी उस पंख को देखकर चकित रह गए।

एक मंत्री बोला,
“यह पंख तो अनमोल है! इसे महल में सजाना चाहिए — यह सम्राट की शोभा बढ़ाएगा।”

दूसरा बोला,
“अगर ऐसा एक पंख इतना सुंदर है, तो उस मोर को पकड़ लिया जाए — उसकी बाकी पूँछ तो और भी कीमती होगी!”

तीसरा बोला,
“हमें उस मोर को पालना चाहिए — रोज़ ऐसे पंख मिलेंगे और हमें लाभ भी होगा।”

दरबार में बहस तेज़ हो गई — कुछ लोग मोर को क़ैद करने की सलाह दे रहे थे, तो कुछ उसकी शोभा को केवल वस्तु की तरह आँक रहे थे।

सम्राट अकबर ने बीरबल की ओर देखा और कहा,
“बीरबल, तुम क्या सोचते हो? इस सुनहरे पंख की असली क़ीमत क्या है?”

बीरबल ने मुस्कराते हुए जवाब दिया:
“जहाँपनाह, यह पंख केवल रंग और रचना की वजह से सुंदर नहीं है — इसकी असली सुंदरता इस बात में है कि यह आज़ाद मोर की पूँछ से आया है।”

फिर उन्होंने समझाया,
“अगर उस मोर को पकड़ लिया जाए, उसकी आज़ादी छीन ली जाए — तो वह डर जाएगा, उसकी चाल, रंग और जीवन सब मुरझा जाएँगे। यह पंख सुंदर इसलिए है क्योंकि वह आज़ाद है।
क़ैद में सौंदर्य फीका पड़ जाता है — चाहे वह पक्षी हो, व्यक्ति हो या विचार।”

अकबर ने गहराई से बात को समझा। उन्होंने तुरंत आदेश दिया:
“मोर को ढूँढो नहीं। उसे अपनी आज़ादी में रहने दो — वही उसकी असली गरिमा है।”

नीति : “सच्ची सुंदरता तब खिलती है जब वह स्वतंत्र हो — बंधन में नहीं।”
          “जो चीज़ हमें सबसे सुंदर लगती है, वह अक्सर आज़ादी की देन होती है — उसे बाँध दो, तो उसकी चमक खो जाती है।”