सम्राट का वज़न

सम्राट का वज़न

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एक दिन सम्राट अकबर ने दरबार में एक अनोखा प्रश्न उठाया:
“बीरबल, बताओ — मेरे लिए मेरी प्रजा का आदर अधिक है या मेरे खज़ाने के लिए?”

कुछ दरबारी सोच में पड़ गए, कुछ मौन रहे।
अकबर ने कहा, “आज हम इसका उत्तर प्रयोग से जानेंगे।”

बीरबल मुस्कुराए और बोले, “इसी क्षण, जहाँपनाह।”

बीरबल ने महल के आँगन में एक बड़ी तराजू मंगवाई।
एक पलड़े पर उन्होंने सम्राट को बैठाया, और दूसरे में भर-भरकर सोने के सिक्के और गहने रखवाए।

फिर उन्होंने दरबारियों और आम लोगों को बुलाया और पूछा,
“अब बताओ, किस ओर झुकोगे — सोने की ओर या सम्राट की ओर?”

सभी ने बिना देर किए सम्राट की ओर सिर झुका दिया।

अकबर ने आश्चर्य से पूछा, “क्या कारण है?”

बीरबल ने मुस्कुराकर उत्तर दिया,
“जहाँपनाह, एक राजा केवल मुकुट से नहीं, अपने न्याय से महान होता है। यह प्रजा आपके सोने से नहीं, आपके इंसाफ़ और दया से जुड़ी है। उनके लिए आप सोने से कहीं अधिक मूल्यवान हैं।”

अकबर भावुक हो गए और बोले,
“बीरबल, तुमने मेरी असली संपत्ति आज दिखा दी — मेरी प्रजा का विश्वास।”

नीति: न्यायप्रिय राजा का वज़न सोने से भी भारी होता है।
         नेतृत्व की असली ताकत धन में नहीं, जन के मन में होती है।