
सम्राट का पदचिह्न

एक दिन सम्राट अकबर अपने बाग़ीचे में टहल रहे थे। बारिश के बाद ज़मीन थोड़ी गीली थी, और बाग़ में संगमरमर की एक नई पट्टी बिछाई गई थी।
अकबर ने अनजाने में उस गीली संगमरमर पर नंगे पाँव चल दिया, जिससे उनके पदचिह्न मिट्टी के साथ उस पत्थर पर उभर आए।
जब उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, तो बोले:
“यह क्या अनादर है? सम्राट की यह छवि मिट्टी से बनी हो? इसे तुरंत साफ़ किया जाए।”
उन्होंने सेवकों को आदेश दिया कि संगमरमर को तुरंत धो दिया जाए।
बीरबल पास ही खड़े थे। उन्होंने विनम्रता से कहा,
“जहाँपनाह, ज़रा रुकिए — अगर आप अनुमति दें, तो मैं इसे साफ़ करवाने की बजाय एक और कार्य करना चाहूँगा।”
अकबर ने उत्सुकता से पूछा, “क्या करोगे?”
बीरबल ने कुछ शिल्पकारों को बुलाया और उस मिट्टी के निशान को वैसे ही संगमरमर में तराशने को कहा — फिर उसे सुंदर लकड़ी की फ्रेमिंग में जड़वा कर दरबार में लटका दिया।
अगले दिन, जब अकबर दरबार में पहुँचे, तो उन्होंने दीवार पर वही पदचिह्न देखे — अब एक सुंदर कलाकृति की तरह सजाए गए।
हैरानी से उन्होंने पूछा,
“बीरबल, तुमने यह क्यों करवाया? मैं तो इसे मिटाना चाहता था।”
बीरबल मुस्कराए और बोले:
“जहाँपनाह, यह केवल मिट्टी का निशान नहीं — यह उस पथ का प्रतीक है, जिस पर एक महान सम्राट चला। आपके कदम जहाँ पड़ते हैं, वहाँ इतिहास बनता है। ये चिह्न मिटाने की नहीं, सँजोने की चीज़ हैं।”
“महानता सिर्फ़ भव्य कार्यों में नहीं होती — कभी-कभी वह छोटे पदचिह्नों में भी झलकती है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते हैं।”
अकबर चुप हो गए — उनके चेहरे पर गर्व और विनम्रता दोनों का भाव था।
नीति : “महानता हमेशा बड़ी बातों में नहीं — कभी-कभी वह छोटे पदचिह्नों की स्मृति में भी होती है।”
“कभी-कभी जो मिटा देने जैसा लगता है, वही भविष्य के लिए प्रेरणा बन सकता है।”