पुस्तकालय में बैल

पुस्तकालय में बैल

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एक दिन सम्राट अकबर अपने राजमहल के पुस्तकालय में विद्वानों के साथ चर्चा कर रहे थे। पुस्तकालय में एक से बढ़कर एक ग्रंथ थे — धर्म, विज्ञान, दर्शन और राजनीति पर आधारित।

उसी समय एक ग्रामीण किसान, बेहद साधारण कपड़ों में, सीधे पुस्तकालय में प्रवेश कर गया।
वह थोड़ा भ्रमित लग रहा था और हाथ जोड़कर बोला:

“हुजूर, क्या यहाँ बैल के लिए घास मिलेगी?”

यह सुनते ही वहाँ मौजूद सैनिक और कुछ विद्वान ज़ोर से हँस पड़े।
“पुस्तकालय में घास?”
“यह कोई खेत है क्या?”
“गाँव वाला पागल हो गया लगता है!” — तरह-तरह की बातें होने लगीं।

अकबर भी थोड़ा चकित हुए, लेकिन कुछ बोले नहीं।

बीरबल ने तुरंत आगे बढ़कर उस किसान को सम्मान से बैठाया और पानी मंगवाया।
उससे शांत स्वर में पूछा,
“तुम यहाँ कैसे पहुँचे?”

किसान ने सरलता से कहा,
“मैं महल के पास से गुज़र रहा था। सुना कि यह सम्राट का भवन है, जहाँ सभी को सहायता मिलती है।
मेरा बैल थक गया है, और भूखा है। मुझे कोई और रास्ता नहीं सूझा, तो मदद माँगने आ गया।”

बीरबल मुस्कराए और बोले,
“तुम बिल्कुल सही आए। एक सच्चा सम्राट वह होता है जो हर भूख को समझे — चाहे वह शरीर की हो या मन की।”

उन्होंने सेवकों को आदेश दिया कि बैल के लिए घास की व्यवस्था की जाए और किसान को भोजन दिया जाए।

बाद में जब सब दरबार में बैठे थे, बीरबल ने कहा:
“यह पुस्तकालय केवल विद्वानों की भूख मिटाता है — लेकिन सच्ची बुद्धिमत्ता तब होती है जब हम एक अनपढ़ किसान और उसके पशु की भूख भी समझ सकें। न्याय और ज्ञान वहीं पूर्ण होता है जहाँ हर ज़रूरत को जगह मिले।”

अकबर ने बीरबल की बात का गहरा अर्थ समझा और उस किसान के सम्मान में विशेष अनुदान की घोषणा की।

नीति : “सच्ची बुद्धिमत्ता केवल ज्ञान में नहीं — संवेदना में होती है।”
          “शिक्षा का अर्थ तब पूरा होता है जब वह हर भूख और ज़रूरत को पहचान सके।”