मोमबत्ती की दौड़

मोमबत्ती की दौड़

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एक ठंडी शाम, सम्राट अकबर अपने दरबार में चिंतन mood में थे। उन्होंने बीरबल से एक रोचक सवाल किया —
“बीरबल, बताओ, क्या तेज़ चलता है — आग या रौशनी?”

दरबारी सोच में पड़ गए। कुछ ने कहा "रौशनी", कुछ बोले "आग", लेकिन बीरबल मुस्कुराते रहे।

फिर बीरबल ने एक मोमबत्ती मंगवाई और दरबार के बीचों-बीच उसे जलाया।

“यह क्या उत्तर है?” अकबर ने पूछा।

बीरबल ने धीरे से कहा,
“जहाँपनाह, आग भी चलती है, रौशनी भी तेज़ है। मगर इनसे भी तेज़ है — आशा।"

“कैसे?” अकबर ने हैरानी से पूछा।

बीरबल बोले,
“इस मोमबत्ती को जलाने से पहले ही जब आपने इसे देखा, तो आपको यह विश्वास हुआ कि अंधेरे में उजाला होगा। यही आशा है — जो रौशनी से पहले मन को रोशन कर देती है।”

दरबार में सन्नाटा छा गया। सबने इस सूक्ष्म पर गहरी बात को महसूस किया।

अकबर ने सर हिलाया और कहा,
“बीरबल, तुमने फिर दिखाया कि जो आंख से नहीं दिखता, वही सबसे तेज़ होता है।”

नीति: आशा वह रौशनी है जो लौ जलने से पहले ही दिल को रोशन कर देती है।
        सबसे तेज़ दौड़ वो है जो मन में होती है — उम्मीद की दौड़।