
बहती मोमबत्ती

एक शांत संध्या को सम्राट अकबर अपने उद्यान में टहल रहे थे।
नदी किनारे की ठंडी हवा, बहते जल की आवाज़ और डूबते सूरज की रौशनी एक अद्भुत दृश्य बना रही थी।
उन्हीं क्षणों में बीरबल कुछ अनोखा करते दिखाई दिए।
उन्होंने एक बड़ा पत्ता लिया, उस पर एक जली हुई मोमबत्ती रखी और धीरे से नदी में बहा दी।
अकबर ने हैरानी से देखा — और तुरंत पूछा:
“बीरबल, यह क्या कर रहे हो?
क्यों जलती हुई मोमबत्ती को बहते पानी में भेज दिया?”
बीरबल ने मुस्कराकर उत्तर दिया:
“जहाँपनाह, यह एक प्रतीक है।
मैं आपको दिखाना चाहता था कि अंधेरे और कठिनाइयों से भरी दुनिया में भी रोशनी तैर सकती है।
यह मोमबत्ती बहते पानी पर है — अस्थिर, डगमगाते हुए, लेकिन फिर भी जल रही है।
उसी तरह जीवन में जब हालात बहकते हैं, समस्याएँ आती हैं,
तो हमें बुझने की नहीं, चमकते रहने की जरूरत होती है।”
अकबर उस दृश्य को गहराई से निहारते रहे —
एक बहती नदी, और उस पर डगमगाती पर अडिग जलती हुई रोशनी।
उनके चेहरे पर संतुलित मुस्कान फैल गई।
“बीरबल, तुमने एक छोटी मोमबत्ती से बहुत बड़ा सबक सिखा दिया।”
उस दिन अकबर ने यह आदेश दिया कि राज्य के सभी विद्यालयों में
संघर्षों में धैर्य और आत्मबल की कहानियाँ पढ़ाई जाएँ —
ताकि हर बच्चा मोमबत्ती की तरह कठिन परिस्थितियों में भी जलना सीख सके।
नीति : “कठिनाइयाँ रास्ता रोकती हैं, पर रोशनी को रोक नहीं सकती —
असली ताक़त तब दिखती है, जब हम अंधेरे में भी जलते हैं।”
“संघर्षों के बीच भी, अगर आत्मा में उजाला हो — तो वह सब पर रोशनी डाल सकती है।”