फुसफुसाया हुआ शब्द

फुसफुसाया हुआ शब्द

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एक दिन अकबर के दरबार में एक अजीब स्थिति बन गई। एक साधारण बात, जो किसी ने चुपचाप कही थी, दिन भर में इतनी बिगड़ गई कि वह अफ़वाह बनकर पूरे महल में फैल गई।

अकबर हैरान थे — "मैंने तो यह बात कही ही नहीं, फिर सब इसे क्यों सच मान रहे हैं?"
उन्होंने बीरबल से पूछा, “बीरबल, एक छोटी-सी बात, जो किसी ने फुसफुसाकर कही थी, वह इतने बड़े रूप में कैसे फैल गई और बदल गई?”

बीरबल मुस्कराए और बोले, “जहाँपनाह, इसका उत्तर अनुभव से ही समझाया जा सकता है।”
उन्होंने उसी क्षण एक योजना बनाई।

बीरबल ने एक दरबारी के कान में चुपचाप एक वाक्य कहा — “आज शाम को बारिश होगी।”
फिर वह दरबारी से बोले, “इसे केवल एक व्यक्ति को और बताना।”

वह बात धीरे-धीरे एक-दूसरे तक पहुँची — और जब शाम को वही बात घूमकर बीरबल के पास वापस पहुँची, तो वह बन चुकी थी — “बीरबल ने कहा है कि आज भारी तूफ़ान आएगा, पेड़ गिरेंगे और महल बंद कर देना चाहिए।”

अकबर ने आश्चर्य से पूछा, “यह कैसे बदल गई?”
बीरबल बोले, “क्योंकि अफ़वाहें ऐसे ही पलती हैं। मुँह, दिमाग़ से तेज़ चलते हैं। लोग सोचने से पहले बोल देते हैं, और हर कोई अपनी समझ से बात में कुछ जोड़ता चला जाता है।”

बीरबल ने गंभीरता से कहा,
“बोले हुए शब्द, चाहे सच हों या झूठ — जब एक बार बाहर आ जाएँ, तो वे अपनी एक ज़िंदगी खुद जीने लगते हैं। उन्हें वापस नहीं लिया जा सकता। इसलिए हर शब्द सोचकर बोलना चाहिए।”

नीति : “शब्द जब बाहर निकलते हैं, तो वे अपना अस्तित्व खुद बना लेते हैं — इसलिए बोलने से पहले सोचो।”
          “अफ़वाहें विचार से नहीं, वेग से फैलती हैं — मुँह दिमाग़ से तेज़ चलता है।”