सोई हुई मोमबत्ती

सोई हुई मोमबत्ती

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एक दिन की बात है। सम्राट अकबर सुबह-सुबह महल के बाग में टहल रहे थे।
सूरज की रोशनी चारों ओर फैली हुई थी, आकाश स्वच्छ था, और बाग़ का हर कोना उजाले से भरा था।

उसी दौरान उन्होंने एक अजीब बात देखी — एक मोमबत्ती जल रही थी, पूरी धूप में।
अकबर को यह बड़ा अटपटा लगा। उन्होंने बीरबल से पूछा,
“बीरबल, सूरज की इस तेज़ रोशनी में मोमबत्ती क्यों जलाई गई है? क्या ज़रूरत है इसकी?”

बीरबल ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया,
“जहाँपनाह, यह मोमबत्ती उस तरह के लोगों की प्रतीक है जो कुछ भी सिर्फ दिखावे के लिए करते हैं — चाहे उसकी ज़रूरत हो या न हो।”

अकबर ने और गहराई से बात समझनी चाही।

बीरबल बोले,
“जैसे यह मोमबत्ती दिन के उजाले में जल रही है, वैसे ही कुछ लोग अपनी अच्छाई, दान, पूजा या सेवा इस तरह करते हैं कि सबको दिखे।
असल में उनका मक़सद काम करना नहीं, बल्कि तारीफ़ पाना होता है। सच्चा प्रकाश वह होता है जो अंधेरे में राह दिखाए, न कि उस समय जब रोशनी पहले से मौजूद हो।”

बीरबल ने बात पूरी करते हुए कहा,
“सच्चे कर्म कभी दिखावे की चाह नहीं रखते। वे चुपचाप अपना काम करते हैं, जैसे सूरज चमकता है — बिना कुछ कहे, बिना किसी प्रशंसा के इंतज़ार में।”

नीति : “सच्चे कर्म दिखावे की ज़रूरत नहीं रखते — वे खामोशी से उजाला करते हैं।”
          “जो काम सिर्फ दिखाने के लिए किया जाए, उसका मूल्य सूर्य के सामने जलती मोमबत्ती जैसा होता है — व्यर्थ।”