दो बीज

दो बीज

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एक दिन दरबार में सम्राट अकबर ने बीरबल से पूछा,
“बीरबल, झूठ और सच में फर्क तो सब जानते हैं, पर क्या झूठ हमेशा पकड़ में आता है?”

बीरबल मुस्कुराए और बोले, “जहाँपनाह, कल इसका उत्तर एक प्रयोग देगा।”
अगले दिन, बीरबल सम्राट के पास दो एक जैसे बीज लेकर आए — दिखने में बिल्कुल एक समान।

उन्होंने कहा, “इनमें से एक बीज असली है, और दूसरा नकली। दोनों को अलग-अलग गमलों में बो दीजिए और देखिए कि समय के साथ क्या होता है।”

अकबर ने आदेश अनुसार दोनों बीजों को बाग़ में बो दिया और हर दिन पानी देने लगे। महीनों बीत गए।

एक दिन, एक गमले में एक हरे अंकुर ने सिर उठाया। दूसरा गमला अब भी सूना था।

बीरबल दरबार में आए और बोले,
“जहाँपनाह, यही उत्तर है —
झूठ, चाहे कितना भी असली दिखे, कभी फल नहीं देता।
सच, भले देर से उगे, पर हमेशा पनपता है और परिणाम देता है।”

अकबर ने सिर हिलाते हुए कहा,
“बीरबल, तुमने एक बीज से जीवन का सबसे बड़ा सत्य सिखा दिया।”

नीति: केवल सत्य पनपता है — झूठ, चाहे कितना भी सजा हो, टिक नहीं सकता।
         सच्चाई समय लेती है, पर उसकी जड़ें गहरी और फल मीठे होते हैं।