टूटी हुई खिड़की का रहस्य

टूटी हुई खिड़की का रहस्य

bookmark

एक सुहानी सुबह की बात है। सम्राट अकबर अपने महल में टहल रहे थे कि उनकी नजर एक खिड़की पर पड़ी। खिड़की का कांच पूरी तरह टूटा हुआ था। उन्होंने तुरंत महल के पहरेदारों और सेवकों को बुलाया।

"यह खिड़की कैसे टूटी?" उन्होंने सख्त स्वर में पूछा।

सभी ने सिर झुका लिए। किसी ने कुछ नहीं देखा, और किसी ने कुछ सुना भी नहीं। हर कोई चुप था।
अकबर को यह बात बहुत खटकने लगी।
"यह तो गड़बड़ है," उन्होंने कहा। "कोई सच नहीं बोल रहा।"

उन्हें केवल एक ही व्यक्ति पर भरोसा था — बीरबल।

बीरबल ने स्थल का निरीक्षण किया और बिना कुछ कहे टूटी खिड़की के पास एक बड़ा आईना (दर्पण) रख दिया।
दरबारियों और सेवकों को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन बीरबल शांत थे।

अगली सुबह, जब सब वहाँ पहुँचे, तो देखा कि वह आईना भी टूट चुका है।

अब बीरबल मुस्कराए। उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है सच्चाई जानने का।”

उन्होंने महल में मौजूद सभी बच्चों को बुलाया और कहा कि वे उसी स्थान से होकर गुजरें, जहाँ आईना रखा था। सभी बच्चे एक-एक कर गुजरने लगे। पर एक बच्चा — जैसे ही वहाँ पहुँचा, उसने नज़रें चुराईं और जल्दी-से वहाँ से निकल गया।

बीरबल ने उसे धीरे से रोका और स्नेह से पूछा, “तुम अपने ही प्रतिबिंब से क्यों बच रहे हो?”

बच्चे की आँखों में आँसू आ गए। उसने सिर झुका लिया और कहा,
“मैं गेंद खेल रहा था। गलती से गेंद खिड़की पर जा लगी और वह टूट गई। मैं डर गया था, इसलिए छिप गया।”

अकबर ने बच्चे को माफ कर दिया और बीरबल की इस अद्भुत युक्ति की सराहना की।

नीति: अपराधबोध हमेशा अंतरात्मा के दर्पण में दिखाई देता है — चाहे कोई उसे छिपाने की कितनी भी कोशिश करे।