अनमोल कंकड़

अनमोल कंकड़

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एक शांत दोपहर की बात है। दरबार लगा हुआ था, और सम्राट अकबर हल्के मूड में थे। तभी बीरबल मुस्कराते हुए उनके पास आए और एक रेशमी थैली सम्राट को भेंट की।

"जहाँपनाह, यह मेरी ओर से एक विशेष उपहार है," बीरबल ने कहा।

अकबर ने उत्सुकता से थैली खोली, लेकिन जैसे ही अंदर देखा — उनकी भौंहें तन गईं।

“यह क्या है?” उन्होंने हँसते हुए पूछा।
“एक साधारण-सा कंकड़? क्या तुम इस पत्थर को उपहार कहते हो?”

बीरबल ने विनम्रता से सिर झुकाया और कहा,
“हाँ, जहाँपनाह। यह सिर्फ़ एक पत्थर नहीं है। यह एक याद दिलाने वाला संकेत है — कि इस संसार में कई बार सबसे सामान्य दिखने वाली चीज़ें ही सबसे अधिक अनमोल होती हैं।”

“कैसे?” अकबर ने उत्सुकता से पूछा।

बीरबल ने समझाया,
“यह पत्थर समय की तरह है — दिखता कुछ नहीं, लेकिन हर जीवन को आकार देता है।
यह विश्वास की तरह है — जिसे हम देख नहीं सकते, पर जो जीवन का आधार है।
यह वफ़ादारी की तरह है — सदा मौन, लेकिन संकट में सबसे बड़ी शक्ति।

हम अक्सर हीरे, सोने और रत्नों को अनमोल मानते हैं, पर असली अनमोल चीज़ें वे होती हैं जो हमारे जीवन को अर्थ देती हैं।”

अकबर ने कंकड़ को ध्यान से देखा, फिर गम्भीरता से मुस्कराए और बोले,
“बीरबल, आज तुमने मुझे फिर याद दिलाया कि तोहफ़े की कीमत उस वस्तु में नहीं, बल्कि देने वाले की भावना में होती है।”

उन्होंने वह छोटा-सा कंकड़ अपने शाही पुस्तकालय की सबसे ऊँची शेल्फ पर रखवा दिया।

नीति: एक साधारण तोहफ़ा भी, जब दिल से दिया जाए, उसमें गहराई और मूल्य छिपा होता है।

       कीमत चीज़ की नहीं, भावना की होती है।