खोई हुई चाबी

खोई हुई चाबी

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एक शाम की बात है। महल में हलचल मच गई — सम्राट के निजी कक्ष की चाबी गायब हो गई थी।
चाबी बहुत महत्वपूर्ण थी, और उसके बिना कमरा नहीं खुल सकता था।

अकबर ने बीरबल को इसकी खबर दी। बीरबल तुरंत खोजबीन में जुट गए।

उन्होंने महल के एक गलियारे में एक सेवक को देखा जो एक दीपक के नीचे झुका हुआ कुछ ढूँढ रहा था।
बीरबल पास गए और पूछा, “तुम क्या ढूँढ रहे हो?”

सेवक बोला, “महाराज की चाबी खो गई है — वही ढूँढ रहा हूँ।”

बीरबल ने पूछा, “क्या यही वह जगह है जहाँ तुमने चाबी खोई थी?”

सेवक थोड़े झिझकते हुए बोला, “नहीं... चाबी तो शायद रसोई में गिर गई थी।”

बीरबल ने हैरानी से पूछा, “तो तुम यहाँ, इस दीपक के नीचे क्यों ढूँढ रहे हो?”

सेवक बोला, “क्योंकि यहाँ रोशनी है — वहाँ अँधेरा है, और ढूँढना मुश्किल है।”

बीरबल हँसे, फिर गंभीर हो गए। उन्होंने सेवक की ओर देखा और बोले,
“तुम ही नहीं, हम सब यही करते हैं। हम अक्सर अपने सवालों, समस्याओं और सच्चाइयों को वहाँ ढूँढते हैं जहाँ उजाला होता है — जहाँ आसानी होती है।
लेकिन असली जवाब वहीं मिलेगा जहाँ वह खोया है — भले ही वह जगह कठिन हो, अँधेरी हो, या असुविधाजनक।”

बीरबल ने फिर अकबर से कहा,
“जहाँपनाह, सच की खोज साहस माँगती है — वह सुविधा और आराम की राह पर नहीं मिलती।”

अकबर ने सिर हिलाकर सहमति जताई और उसी समय सेवकों को रसोई में जाकर चाबी ढूँढने का आदेश दिया — और चाबी वहीं मिल गई।

नीति : “सच की तलाश वहाँ करो जहाँ वह छिपा है — न कि जहाँ उसे ढूँढना आसान लगता है।”
          “सच की खोज में रोशनी नहीं, हिम्मत ज़रूरी होती है।”