
राजा की उंगली

एक दिन सम्राट अकबर शिकार पर गए। शिकार के दौरान, एक हादसे में उनकी एक उंगली कट गई।
खून बह रहा था और दर्द के मारे अकबर ग़ुस्से में आ गए। उन्होंने पास खड़े बीरबल से झुँझलाकर पूछा,
“क्या यह कोई शुभ संकेत है? यह कैसा दुर्भाग्य है?”
बीरबल शांत स्वर में बोले,
“जहाँपनाह, हो सकता है यह किसी भले के लिए हुआ हो। हर घटना के पीछे कोई कारण छिपा होता है — चाहे वह हमें अभी न दिखे।”
अकबर का ग़ुस्सा और बढ़ गया।
“क्या तुम मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो? मेरी उंगली कटी है और तुम इसे अच्छा कह रहे हो?”
ग़ुस्से में उन्होंने बीरबल को जेल में डालने का आदेश दे दिया।
कुछ दिन बाद अकबर दोबारा शिकार पर गए। इस बार वे गहरे जंगल में भटक गए और वहाँ एक आदिवासी कबीले ने उन्हें पकड़ लिया।
वह कबीला एक विशेष बलिदान की तैयारी कर रहा था — और सम्राट को बलिदान के लिए चुना गया।
लेकिन जैसे ही आदिवासी पुजारी ने अकबर का हाथ देखा, वह चौंक गया।
“यह मनुष्य अपूर्ण है — इसकी एक उंगली कटी हुई है। हम अपूर्ण शरीर का बलिदान नहीं करते।”
इसलिए अकबर को छोड़ दिया गया।
सम्राट किसी तरह वापस महल लौटे — भीतर तक हिल चुके थे।
सबसे पहले उन्होंने बीरबल को जेल से रिहा कराया और गहराई से माफ़ी माँगी।
बीरबल मुस्कराए और बोले,
“जहाँपनाह, अगर आप मुझे जेल न भेजते, तो मैं भी आपके साथ शिकार पर जाता — और मेरी उंगलियाँ तो सलामत हैं…”
अकबर ने चुपचाप सिर झुका लिया — अब उन्हें बीरबल की बात का गहरा अर्थ समझ आ चुका था।
नीति : “कभी-कभी जो हमें दुःख देता है, वही हमें बड़े दुःख से बचा लेता है।”
“वरदान अक्सर दर्द के पीछे छिपा होता है — बस समय आने पर वह स्पष्ट होता है।”