
कानाफूसी करने वाला सेवक

सम्राट अकबर के दरबार में इन दिनों कुछ अजीब सा चल रहा था। जो बातें केवल बंद कमरों के भीतर होती थीं — वे रहस्यमयी ढंग से महल की चारदीवारी लांघ कर पूरे शहर में फैल जातीं।
बातें ऐसी जो केवल कुछ गिने-चुने लोग ही जानते थे, मगर वे बाज़ार, गलियों और चाय की दुकानों तक जा पहुँचतीं।
अकबर को यह जानकर चिंता हुई। उन्होंने महसूस किया कि उनके दरबार में कोई ऐसा व्यक्ति है जो अंदर की बातों को बाहर फैला रहा है — एक गुप्तचरों जैसा गद्दार।
उन्होंने तुरंत बीरबल को बुलाया और आदेश दिया, “बीरबल, दरबार में कोई विश्वासघाती है। हमारे गोपनीय निर्णय लीक हो रहे हैं। उसे ढूँढ निकालो!”
बीरबल ने कुछ पल सोचा और मुस्कराते हुए कहा, “महाराज, इसकी एक युक्ति मेरे पास है। मुझे केवल एक दिन का समय दीजिए।”
अगले दिन बीरबल ने सभी शाही कर्मचारियों को इकट्ठा किया और धीरे से एक ख़बर साझा की — “सम्राट एक दूर देश की राजकुमारी से शीघ्र विवाह करने वाले हैं।”
उन्होंने यह बात ऐसे तरीके से कही कि यह गुप्त अफ़वाह की तरह लगती, और केवल उन्हीं लोगों ने सुनी जो शक के घेरे में थे।
एक ही दिन में, वही बात शहर की गलियों में गूंजने लगी। चाय की दुकानों पर लोग उसी ‘राजकुमारी’ की चर्चा करने लगे।
बीरबल ने उस अफ़वाह की कड़ी को खोजते हुए पता लगाया कि यह बात सबसे पहले एक चाय बेचने वाले तक पहुँची — और उसने बताया कि यह खबर उसे एक शाही सेवक ने दी थी।
सेवक को अकबर के सामने लाया गया।
अकबर ने पहले तो क्रोध प्रकट किया, लेकिन फिर राहत की साँस ली — बीरबल की योजना ने सच्चाई को उजागर कर दिया था। उस सेवक को दंड दिया गया, और भविष्य में गोपनीयता की निगरानी और सख्त कर दी गई।
बीरबल को उसकी चतुराई और सूझबूझ के लिए दरबार में फिर से सराहा गया।
नीति: फुसफुसाहटों के भी सुराग मिल जाते हैं — सच चाहे जितना भी छुपे, सामने आ ही जाता है।