अदृश्य मेहमान

अदृश्य मेहमान

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एक शाम सम्राट अकबर अपने दरबार में चिंतन मुद्रा में बैठे थे। विचारों में खोए हुए उन्होंने अचानक बीरबल की ओर देखा और कहा,
“बीरबल, कल रात्रिभोज पर तुम एक ऐसे मेहमान को आमंत्रित करो जिसे कोई देख नहीं सकता — लेकिन फिर भी हर कोई उसका सम्मान करता है।”

दरबार में सन्नाटा छा गया, फिर अचानक हल्की हँसी सुनाई दी। कुछ दरबारियों ने इसे एक मज़ाक समझा, तो कुछ ने सोचा कि यह तो असंभव है।
"ऐसा मेहमान कैसा हो सकता है?" सभी के मन में यही सवाल था।

लेकिन बीरबल, हमेशा की तरह शांत और आत्मविश्वास से भरे हुए थे। उन्होंने सिर झुकाकर आदेश स्वीकार कर लिया।

अगली शाम, दरबार में सब सज-धजकर उपस्थित थे। सबकी निगाहें दरवाज़े की ओर थीं कि देखेंगे कौन-सा अनोखा मेहमान आने वाला है। तभी बीरबल अंदर आए — उनके साथ एक खाली कुर्सी थी। उन्होंने उस खाली कुर्सी को पूरी श्रद्धा से नमस्कार किया।

दरबार में खुसर-पुसर शुरू हो गई। सभी हैरान थे।

तब बीरबल मुस्कराए और बोले,
“महाराज, मैं जिस अतिथि को लाया हूँ, वह 'समय' है। वह दिखाई नहीं देता, फिर भी हर किसी पर उसका प्रभाव है। वह राजा और रंक में अंतर नहीं करता। वह न बोलता है, न चलता है — लेकिन सबको चलाता है। वह हमें सिखाता है, दंड देता है, और चुपचाप हमारे घाव भरता है।”

दरबार में गहरी शांति छा गई। सभी विचारमग्न हो गए।

अकबर ने प्रशंसा से बीरबल की ओर देखा और मुस्कराकर कहा, “बीरबल, आज तुमने मुझे फिर से सिखाया कि सबसे बड़ा गुरु और सबसे सम्मानीय अतिथि वही है जिसे हम देख नहीं सकते — समय।”

नीति: सबसे शक्तिशाली उपस्थिति अक्सर अदृश्य होती है — जैसे समय, जो सब कुछ बदल देता है।