ईमानदार सिक्का

ईमानदार सिक्का

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एक दिन दरबार की सफाई करते समय एक सेवक को ज़मीन पर एक सोने का सिक्का मिला। वह उसे सम्राट अकबर के पास ले गया।

अकबर ने दरबारियों से पूछा, “यह किसका सिक्का है?”
सभी चुप रहे। कोई आगे नहीं आया।

“तो फिर यह राज्य को सौंप दिया जाए,” अकबर बोले।

लेकिन बीरबल मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने वह सिक्का लिया और दरबार में रखे सोने के अन्य सिक्कों में उसे मिला दिया। फिर उन्होंने सभी सिक्कों को एक थाली में रखकर दरबार में घुमाया।

एक मंत्री ने सिक्कों को ध्यान से देखा और अचानक ठिठक गया।
“जहाँपनाह,” उसने कहा, “यह सिक्का मेरा है! इस पर मैंने एक छोटा सा चिह्न खुदवाया था। देखिए।”

सभी ने उस पर निशान देखा — वाकई वो उसकी निजी पहचान थी।

बीरबल ने अकबर की ओर देखा और कहा,
“जिस चीज़ पर सच्चाई की छाप हो, वो कभी छिप नहीं सकती। ईमानदारी, देर से सही, लौट ही आती है।”

अकबर मुस्कुराए और मंत्री की ईमानदारी की सराहना की। उन्होंने उसे उसका सिक्का लौटा दिया और कहा,
“बीरबल, तुम्हारी ये परीक्षा छोटी थी, पर शिक्षा बड़ी।”

नीति: ईमानदारी की पहचान मिटती नहीं — वो लौटकर ज़रूर आती है।
         सच्चाई चाहे जितनी देर छुपे, एक दिन सामने आ ही जाती है।