
रानी का हार

एक दिन महल में अफरा-तफरी मच गई — रानी का कीमती मोती जड़ा हार चोरी हो गया था।
हर जगह खोज की गई, महल के कोने-कोने छान डाले गए, लेकिन हार का कोई सुराग नहीं मिला।
अकबर ने तुरंत सभी दासियों को बुलाया और सख़्ती से आदेश दिया कि उनकी तलाशी ली जाए।
तलाशी ली गई, पर किसी के पास से हार नहीं मिला।
अब शक और बेचैनी बढ़ने लगी।
अकबर ने बीरबल को बुलाया और कहा,
“बीरबल, हार गायब है, चोर महल में ही है — पर कोई सबूत नहीं।”
बीरबल कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले,
“जहाँपनाह, मुझे बस एक कटोरा पानी और सभी दासियों को दोबारा इकट्ठा करने दीजिए।”
बीरबल एक साफ़ पानी से भरा कटोरा लेकर आए और सभी दासियों के सामने रख दिया।
फिर बोले,
“यह पवित्र जल है। इसे देखने से हर छिपी चीज़ सामने आ जाती है। जो भी दोषी है, उसका चेहरा इस पानी में साफ़ दिख जाएगा — पानी कभी झूठ नहीं बोलता।”
सभी दासियाँ एक-एक कर कटोरे के पास आईं। जब एक विशेष दासी ने उसमें झाँका, उसका चेहरा पीला पड़ गया। वह घबरा गई और कुछ देर बाद फूट-फूट कर रोने लगी।
“माफ़ करें महाराज,” उसने कहा, “मैंने ही हार चुराया था। डर के मारे छिपा दिया था, लेकिन अब और नहीं सह पा रही।”
अकबर हैरान रह गए — उन्होंने बीरबल से पूछा,
“क्या सचमुच पानी में कुछ दिखाई देता है?”
बीरबल मुस्कराए और बोले,
“नहीं जहाँपनाह — यह कोई जादू नहीं था। यह अपराधबोध का असर था। जब किसी के भीतर सच्चाई होती है, तो एक साधारण बात भी उसके दिल पर भारी पड़ जाती है। अपराधबोध, कभी-कभी प्रमाण से ज़्यादा तेज़ काम करता है।”
नीति : “अपराधबोध एक ऐसा आईना है, जिसमें सच्चाई खुद को दिखा देती है — बिना सबूत के।”
“अपराधबोध भीतर की आग है — जो सच बाहर ला देती है।”