बोलती तस्वीर

बोलती तस्वीर

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एक दिन एक घमंडी चित्रकार दरबार में आया। वह बहुत प्रसिद्धि चाहता था और अपनी कला को सबसे श्रेष्ठ मानता था।
उसने ऐलान किया,
“मेरी चित्रकारी इतनी जीवंत है कि वो बोल सकती है! लोग मेरी बनाई तस्वीरों को देख भावुक हो जाते हैं — जैसे वो सच में उनसे बात कर रही हो।”

अकबर ने उसकी बात में रुचि ली और कहा,
“अगर तुम्हारी कला सच में इतनी जीवंत है, तो दरबार में लाओ — हम भी सुनना चाहेंगे कि एक तस्वीर कैसे बोलती है।”

अगले दिन चित्रकार दरबार में आया। उसने एक पर्दा हटाया और उसके पीछे एक सुंदर घोड़े की तस्वीर थी — बहुत ही वास्तविक, सजीव और प्रभावशाली।
उसने गर्व से कहा,
“जहाँपनाह, यदि यह घोड़ा बोल सकता, तो अभी कहता — ‘मुझे भूख लगी है।’ देखिए, इसकी आँखों में देखिए — यह बोल रहा है!”

दरबार में कुछ दरबारी वाहवाही करने लगे, लेकिन बीरबल चुपचाप मुस्कराए।
उन्होंने कहा,
**“बिलकुल — अगर यह बोल सकता है, तो खा भी सकता है। चलिए, हम इसे कुछ घास और पानी देते हैं... और थोड़ा इंतज़ार करते हैं।”
“अगर भूखा है, तो ज़रूर खा लेगा।”

दरबार में हँसी गूंज उठी। चित्रकार शर्मिंदा हो गया — उसकी चालाकी सबके सामने उजागर हो चुकी थी।

बीरबल ने गंभीरता से कहा,
“घमंड तब तक ज़िंदा रहता है, जब तक तर्क सामने नहीं आता। जो सच्चा होता है, वह चुपचाप खुद को सिद्ध करता है — शोर मचाने की ज़रूरत नहीं होती।”

अकबर ने सिर हिलाकर कहा,
“बीरबल, एक बार फिर तुमने सत्य को सुंदरता से जीत दिलाई।”

नीति : “घमंड की चमक, तर्क की रोशनी में फीकी पड़ जाती है।”
          “जो सच में श्रेष्ठ होता है, उसे बोलने की ज़रूरत नहीं — उसका काम खुद बोलता है।”