
रंगा हुआ पक्षी

एक बार दरबार में एक व्यक्ति एक पिंजरे में रंग-बिरंगा पक्षी लेकर आया। उसने सम्राट अकबर के सामने दावा किया,
“जहाँपनाह! यह पक्षी बेहद दुर्लभ है। न मोर है, न तोता – यह एक अनोखा जीव है, केवल आपके ही दरबार में शोभा देगा।”
पक्षी को देखकर सभी दरबारी चकित रह गए — वह मोर जैसा दिखता था, लेकिन उसकी चाल अजीब थी और उसकी आवाज़ भी बिल्कुल अलग।
अकबर को संदेह हुआ, पर उन्होंने बीरबल से कुछ कहने को कहा।
बीरबल मुस्कुराए और बोले, “जहाँपनाह, कल तक प्रतीक्षा कीजिए। मैं इस रहस्य को सुलझा दूँगा।”
अगले दिन बीरबल असली मोर लेकर दरबार में हाज़िर हुए। उन्होंने दोनों पक्षियों को एक साथ रखा। असली मोर अपने नैसर्गिक सौंदर्य और नृत्य से सबका ध्यान खींचने लगा, जबकि रंगा हुआ पक्षी — जो दरअसल एक आम कौआ था — घबरा गया।
तभी मोर ने एक बार ज़ोर से पुकारा। डर के मारे कौआ काँप उठा और ज़ोर से काँव-काँव कर बैठा।
सच्चाई सामने आ गई। सब समझ गए कि यह पक्षी तो सिर्फ़ एक रंगा हुआ कौआ था।
अकबर ने क्रोधित होकर उस व्यक्ति को दंड दिया और बीरबल की बुद्धिमानी की प्रशंसा की।
नीति: नकल चाहे कितनी भी रंगीन क्यों न हो — असली पहचान सामने आते ही धुल जाती है।
नकल कभी असल की जगह नहीं ले सकती। सच्चाई को छुपाया नहीं जा सकता।