भीगा हुआ छाता

भीगा हुआ छाता

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एक दिन दरबार में एक मंत्री बहुत घमंड से बोल रहा था।
वह कहता, “मैं अपनी योजना और बुद्धि से हर चीज़ नियंत्रित कर सकता हूँ — समय, लोग, स्थिति… सब कुछ मेरे नियंत्रण में रहता है।”

अकबर सुनते रहे, लेकिन बीरबल ने उसकी बातों में छिपे अहंकार को महसूस कर लिया।
बीरबल ने कुछ न कहा, लेकिन एक हल्की चाल चलने का निश्चय किया।

अगले दिन जब मंत्री महल में आया, तो उसका सेवक उसके लिए छाता पकड़े हुए था। वह जैसे ही दरबार की ओर बढ़ा, बीरबल ने चुपचाप एक घड़े से पानी लिया और मंत्री के छाते पर डाल दिया।

छाते में छेद था, और मंत्री के सिर से पानी टपकने लगा — वह गीला हो गया और नाराज़ भी।

बीरबल मुस्कराए और बोले,
“मंत्री जी, आपने कहा था कि आप सब कुछ नियंत्रित कर सकते हैं — लेकिन आप अपने ऊपर गिरते पानी को भी रोक नहीं सके। आप छाते को तो संभाल रहे थे, पर बारिश को भूल गए।”

दरबार में हल्की हँसी गूँज उठी, और मंत्री को अपनी गलती का अहसास हुआ।

बीरबल गंभीर होकर बोले,
“मनुष्य सोचता है कि वह सब कुछ चला रहा है, पर असली शक्ति प्रकृति, समय और परिस्थितियों के हाथ में है। नियंत्रण एक भ्रम है — और घमंड उस भ्रम का सबसे बड़ा परिणाम।”

नीति : “नियंत्रण एक भ्रम है — असली शक्ति सृष्टि और प्रकृति के पास है।”
          “जो सब कुछ नियंत्रित समझे, वह कभी एक बूँद से भी हार सकता है।”