बुद्धिमान भिखारी

बुद्धिमान भिखारी

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एक दिन बीरबल महल के बाहर टहल रहे थे, तभी उन्होंने सड़क किनारे एक दृश्य देखा जो आम नहीं था।

एक भिखारी, जो खुद फटे कपड़े पहने था और ठंड से काँप रहा था, अपने कटोरे में पड़ा आख़िरी तांबे का सिक्का उठाकर पास बैठे दूसरे भिखारी को दे रहा था — जो उससे भी अधिक कमज़ोर और भूखा दिख रहा था।

बीरबल यह देखकर रुके। वह भिखारी के पास पहुँचे और बोले,
“तुम्हारे पास कुछ नहीं है, फिर भी तुमने अपना आख़िरी सिक्का दे दिया? क्यों?”

भिखारी ने नम्रता से उत्तर दिया, “क्योंकि मैं जानता हूँ कि कुछ भी न होना कैसा लगता है — और अगर मेरी थोड़ी सी मदद उससे एक वक्त की भूख मिटा दे, तो मैं खाली होकर भी संतुष्ट हूँ।”

बीरबल बहुत प्रभावित हुए। वे उस भिखारी को दरबार में ले आए।

सम्राट अकबर ने जब यह सुना तो वह चकित रह गए। उन्होंने भिखारी से पूछा,
“जब तुम्हारे पास कुछ नहीं था, तब भी क्यों दिया?”

भिखारी ने शांत स्वर में कहा, “दान केवल अमीरी से नहीं होता, दया से होता है। और मैं इस दर्द को समझता हूँ — इसलिए उसे बाँट लिया।”

अकबर ने उसे इनाम में नया वस्त्र, खाना और स्थायी आश्रय देने का आदेश दिया।

नीति: सच्चा दान जेब से नहीं, दिल से निकलता है।
         कभी-कभी जिनके पास सबसे कम होता है, वही सबसे ज़्यादा देने वाले होते हैं।