
फुसफुसाता तोता

अकबर के दरबार में एक दिन एक अजीब व्यक्ति आया। वह एक रंग-बिरंगे तोते को अपने साथ लाया और दरबारियों के सामने घमंड से बोला,
“महाराज! यह कोई साधारण तोता नहीं है — यह लोगों के मन की बातें जानता है और उनके रहस्यों को प्रकट कर सकता है।”
अकबर ने दिलचस्पी ली और कहा, “अच्छा! तो देखना है कि यह क्या कहता है।”
तोते ने फड़फड़ाते हुए बोलना शुरू किया — और अचानक बोला,
“सम्राट अकबर अपने तकिए के नीचे मिठाई छिपाते हैं!”
अकबर चौंक गए। यह बात सच थी — उन्होंने कुछ दिन पहले ही छुपाकर खास मिठाइयाँ रखी थीं, ताकि कोई उन्हें न देखे।
सारे दरबारी चकित रह गए।
अकबर गंभीर हो गए। उन्होंने बीरबल को बुलाया और कहा, “यह बात कोई जान नहीं सकता था, फिर इस तोते को कैसे पता?”
बीरबल ने शांत होकर जाँच शुरू की। उन्होंने उस आदमी पर नजर रखी और पाया कि वह आदमी चोरी-छिपे महल के आसपास घूमता था, सेवकों से गुप्त बातें सुनता, और खिड़कियों से दरबार और राजमहल की हलचलें देखता।
रात में वह तोते को ये बातें सिखाता, और फिर दिन में दरबार में उसे “जादू” के रूप में पेश करता।
बीरबल ने अकबर को पूरी सच्चाई बताई और कहा,
“यह तोता नहीं बोलता, यह उस आदमी की झूठी आँखें और चालाकी बोलती हैं। यह जादू नहीं, छल है — और धोखा चाहे जिस रूप में हो, उसकी असलियत जल्दी ही सामने आ जाती है।”
अकबर ने उस धोखेबाज़ को दंडित किया और दरबार में घोषणा की कि झूठ चाहे आकर्षक आवरण में आए, अंत में वह झूठ ही साबित होता है।
नीति : “छल, चाहे जादू का रूप ले — उसकी असलियत छिप नहीं सकती।”
“झूठ जब सच का मुखौटा पहनता है, तब भी अंत में बेनकाब हो ही जाता है।”