
पानी की परीक्षा

एक दिन दो किसान सम्राट अकबर के दरबार में आए। दोनों एक ही खेत के पानी पर अपना-अपना अधिकार जताते हुए झगड़ रहे थे।
पहला किसान बोला, “यह पानी मेरी ज़मीन से होकर आता है, इसलिए अधिकार मेरा है।”
दूसरा किसान बोला, “लेकिन मैं इसका बेहतर उपयोग करता हूँ — मेरी फसलें फल-फूल रही हैं!”
अकबर ने दोनों की बात सुनी और मामले को बीरबल पर सौंप दिया।
बीरबल ने थोड़ी देर सोचा और फिर आदेश दिया, “दोनों को एक-एक घड़ा पानी दो और इन मुरझाए पौधों को दो दिन तक अपने-अपने तरीक़े से सींचने को कहो। फिर देखेंगे कौन योग्य है।”
दोनों किसान अपने-अपने पौधों को लेकर चले गए। दो दिन बाद, सभी दरबारी फिर इकट्ठा हुए।
पहले किसान का पौधा थोड़ा भी नहीं बदला था — वह सूखा और मुरझाया हुआ ही रहा।
दूसरे किसान का पौधा हरा-भरा हो गया था, उसमें जान लौट आई थी।
बीरबल बोले,
“यह सिर्फ़ पानी की बात नहीं है। यह देखभाल, समय और मेहनत की बात है। जो अपने हिस्से की चीज़ की क़दर करता है, वही उसका सच्चा अधिकारी होता है।”
अकबर मुस्कुराए और फैसला दूसरे किसान के पक्ष में सुनाया।
नीति: सिर्फ़ अधिकार जताना पर्याप्त नहीं — सच्चा हक़ मेहनत और जिम्मेदारी से साबित होता है।
वही पानी जीवन देता है, जो देखभाल के साथ बहाया जाए।