सुनहरा मौन

सुनहरा मौन

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एक दिन अकबर के दरबार में एक आदमी आया जो अपने गायन कौशल पर बहुत गर्व करता था।
उसने ऊँची आवाज़ में घोषणा की, “जहाँपनाह, मैं ऐसा गाता हूँ कि स्वर्ग के द्वार भी खुल जाते हैं! मेरा गीत सुनने के बाद लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं!”

अकबर ने मुस्कुरा कर कहा, “तो फिर हमें भी सुनाओ अपना गान।”

लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति गाने को तैयार हुआ, बीरबल ने जेब से कुछ सोने के सिक्के निकाले और उसकी ओर बढ़ा दिए।

वह चौंक गया, “ये किसलिए?”

बीरबल बोले, “ये सिक्के तुम्हारे मौन के लिए हैं। कृपया गाना मत गाना।”

पूरा दरबार हैरान रह गया। आदमी ने आश्चर्य से पूछा, “लेकिन क्यों?”

बीरबल ने शांत स्वर में उत्तर दिया,
“क्योंकि तुम्हारा गाना सुनकर सबको तकलीफ़ होगी। लेकिन अगर तुम चुप रहो, तो लोग कम से कम तुम्हारे बारे में अच्छा सोच सकते हैं। तुम्हारा मौन, तुम्हारे गान से कहीं ज़्यादा मूल्यवान है।”

दरबार में हँसी गूँज उठी।
अकबर ने भी हँसते हुए कहा, “बीरबल, आज तुमने हमें सिखाया कि कभी-कभी चुप रहना ही सबसे मधुर संगीत होता है।”

गायक शर्मिंदा होकर दरबार से चला गया।

नीति: जब शब्द अपना असर खो बैठें, तब मौन ही सबसे ऊँचा सुर होता है।
        मौन वहाँ अमूल्य है जहाँ शब्द व्यर्थ हों।