
पत्थरों की सीढ़ी

एक दिन दरबार में एक आम नागरिक को विशेष रूप से बुलाया गया।
वह उदास और परेशान दिख रहा था।
अकबर ने कारण पूछा, तो वह बोला:
“जहाँपनाह, मेरा जीवन समस्याओं से भरा है — कभी धन की कमी, कभी अपमान, कभी असफलता।
ऐसा लगता है जैसे हर दिशा में बस पत्थर ही पत्थर हैं।”
अकबर ने उसकी ओर देखा और कहा,
“समस्याओं को कैसे सुलझाया जाए — यह जानने के लिए, चलो बीरबल से पूछते हैं।”
बीरबल मुस्कराए।
फिर उन्होंने तुरंत राजमहल के बाग़ में चलने का आग्रह किया।
बाग़ में पहुँचकर बीरबल ने कुछ पत्थर मँगवाए, और उन्हें एक के ऊपर एक सजाकर एक छोटी सी सीढ़ी बना दी।
फिर वह चढ़ते हुए ऊपर खड़े हो गए — अब वह बाकी सब लोगों से थोड़ा ऊँचे थे।
सब हैरान।
बीरबल नीचे उतरे और उस व्यक्ति से बोले:
“तुमने जिन पत्थरों की शिकायत की थी —
मैंने उन्हें सीढ़ी बना लिया।
उन्होंने मुझे ऊपर उठाया, जबकि तुम उनसे दबे हो। फर्क सिर्फ़ देखने के नज़रिए और सोच की दिशा में है।”
“समस्याएँ जीवन का बोझ नहीं — अगर चाहो, तो वे तुम्हें ऊँचाई पर पहुँचा सकती हैं।
बस तुम्हें डरना छोड़कर, चढ़ना सीखना होगा।”
अकबर ने प्रसन्न होकर उस व्यक्ति को राज्य की सहायता से एक नया व्यवसाय शुरू करने का अवसर दिया।
नीति : “जीवन की समस्याएँ पत्थर हैं — लेकिन वही पत्थर तुम्हारी सीढ़ी बन सकते हैं, अगर तुम चढ़ने की हिम्मत करो।”
“हर ठोकर रास्ता रोकती नहीं — कुछ ठोकरें मंज़िल तक पहुँचने की सीढ़ी होती हैं।”