
न्यायाधीश की टोपी

एक दिन सम्राट अकबर ने दरबार में सवाल उठाया,
“बीरबल, बताओ — एक न्यायाधीश को निष्पक्ष और न्यायप्रिय क्या बनाता है? क्या सिर्फ़ कानून का ज्ञान काफ़ी है?”
बीरबल मुस्कुराए और बोले,
“जहाँपनाह, इसका उत्तर एक प्रयोग से देंगे।”
बीरबल ने तुरंत एक साधारण से मुक़दमे की व्यवस्था की — दो दरबारियों में ज़मीन के छोटे विवाद को लेकर झगड़ा दिखाया गया।
फिर, उन्होंने उस मुक़दमे के लिए अदालत में बैठने वाले न्यायाधीश को एक बहुत भारी, गर्म, और असहज टोपी पहनने के लिए दी।
फिर वह न्यायाधीश अपनी सीट पर बैठा और सुनवाई शुरू हुई।
किन्तु थोड़ी ही देर में, गर्मी और असहजता के कारण वह बेचैन हो उठा — उसने जल्दी से पक्ष सुने बिना ही निर्णय सुना दिया, बस जल्द से जल्द मामले से छुटकारा पाने के लिए।
बीरबल ने तब मुस्कुराते हुए कहा,
“जहाँपनाह, देखिए — जैसे ही न्यायाधीश असुविधा में आया, उसका धैर्य और निष्पक्षता डगमगा गई। अब सोचिए, अगर किसी पर बाहरी दबाव हो — डर, लोभ या जल्दबाज़ी — तो क्या वह सच्चा न्याय दे पाएगा?”
अकबर ने सिर हिलाया और कहा,
“बीरबल, आज तुमने दिखाया कि न्याय सिर्फ़ ज्ञान से नहीं, बल्कि संयम, धैर्य और आत्म-संयम से चलता है।”
नीति: सच्चा न्याय वही है जो असहज परिस्थितियों में भी स्थिर बना रहे।
न्याय में न जल्दबाज़ी होनी चाहिए, न सुविधा की लालसा।