
अदृश्य स्याही

एक दिन दरबार में एक प्रसिद्ध कवि ने ग़ुस्से में आकर बीरबल पर आरोप लगाया,
“जहाँपनाह! बीरबल ने मेरी कविता चुरा ली है और उसे अपना बताता है।”
दरबार में सन्नाटा छा गया। सभी हैरान थे — बीरबल पर चोरी का इल्ज़ाम?
सम्राट अकबर ने गंभीर स्वर में बीरबल की ओर देखा,
“क्या यह सच है, बीरबल?”
बीरबल ने शांत स्वर में कहा,
“जहाँपनाह, मैं कविता का सम्मान करता हूँ, पर चोरी नहीं करता। यदि यह कविता सच में इस कवि की है, तो यह उसे दोबारा लिखने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए।”
अकबर ने सहमति में सिर हिलाया और कवि से कहा,
“इस कविता को अभी हमारे सामने फिर से लिखिए।”
कवि ने कागज़ उठाया, क़लम चलाई… लेकिन कुछ भी नहीं लिख पाया।
कभी पंक्तियाँ अधूरी थीं, तो कभी भाव ही नहीं आ रहा था।
वह परेशान हो गया, उसके चेहरे पर पसीना आ गया।
तभी बीरबल मुस्कुरा कर बोले,
“जहाँपनाह, सच्चे विचार ऐसे होते हैं जैसे अदृश्य स्याही — अगर वो आपके नहीं हैं, तो वो टिकते नहीं। यदि यह कविता उसकी होती, तो वह बिना हिचकिचाहट के उसे फिर से रच पाता।”
अकबर ने समझदारी से सिर हिलाया और कवि को क्षमा कर दिया।
नीति: मूल विचार ही आत्मविश्वास से बार-बार दोहराए जा सकते हैं।
जो हमारा नहीं होता, वह ज़्यादा देर तक हमारे पास टिकता नहीं।