नापी हुई नदी

नापी हुई नदी

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एक दिन दरबार में एक घमंडी विद्वान आया। वह अपने ज्ञान पर बहुत अभिमान करता था। उसने अकबर से कहा, “जहाँ तक गणना और माप का सवाल है, मैं हर चीज़ को माप सकता हूँ — यहाँ तक कि नदी के बहाव को भी।”

अकबर ने उसकी बात सुनकर बीरबल की ओर देखा और मुस्कराया, जैसे उन्हें किसी मज़ेदार जवाब की उम्मीद हो।

बीरबल चुपचाप उस विद्वान को दरबार के पास बहती नदी के किनारे ले गए। वहाँ पानी धीरे-धीरे बह रहा था।
विद्वान बोला, “देखिए, मैंने यंत्रों और गणनाओं से इसकी गति पूरी तरह माप ली है। इसका बहाव स्थिर है।”

बीरबल मुस्कराए। उन्होंने चुपचाप अपना एक पाँव नदी में डाला और कहा,
“अब बहाव बदल गया। पानी मेरे पाँव से टकरा कर दूसरी दिशा में बहने लगा है। तो क्या तुम्हारी गणना अब भी वही है?”

विद्वान चुप हो गया। उसे समझ में आ गया कि जीवन और प्रकृति को पूरी तरह मापना असंभव है — क्योंकि हर क्षण कुछ बदल सकता है।

बीरबल ने कहा, “जीवन भी नदी की तरह है। हर क्षण नया है, हर स्थिति बदलती है। कुछ चीज़ें गणना के बाहर होती हैं।”

नीति : “जीवन बहाव है — हर बात मापी नहीं जा सकती।”
          “सभी चीज़ें तर्क और गणना से नहीं समझी जा सकतीं।”