दो पत्तियाँ

दो पत्तियाँ

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एक दिन दरबार में अकबर ने पूछा, “बीरबल, जीवन का असली अर्थ क्या है? और कैसे समझा जाए कि कोई चीज़ जीवित है या नहीं?”

बीरबल थोड़ी देर चुप रहे, फिर बोले, “जहाँपनाह, कल मैं इसका उत्तर एक उदाहरण से दूँगा।”

अगले दिन बीरबल दो पत्तियाँ लेकर दरबार में आए। दोनों देखने में एक जैसी थीं — हरी, चमकदार, और ताज़ी।
उन्होंने दरबारियों से पूछा, “बताइए, इन दोनों में से कौन-सी पत्ती अधिक जीवित है?”

कुछ बोले, “जो ज़्यादा हरी है।”
कुछ ने कहा, “जिसकी नमी ज़्यादा है।”
किसी ने अनुमान लगाया, “जो ज़्यादा नरम है।”

बीरबल मुस्कराए और बोले, “सही उत्तर है — वह पत्ती जो अभी भी पेड़ की डाली से जुड़ी है।”
उन्होंने एक पत्ती को पेड़ की टहनी सहित दिखाया और दूसरी जोड़ से तोड़ी हुई थी।

बीरबल समझाने लगे, “जो पत्ता अभी पेड़ से जुड़ा है, वह पोषण पा रहा है, वह साँस ले रहा है, वह वास्तव में जीवित है। जबकि दूसरी पत्ती भले ही ताज़ी दिखे, पर वह अब अलग हो चुकी है — उसमें जीवन नहीं बचा।”

बीरबल बोले, “इसी तरह, जीवन में भी हमारा जुड़ाव — अपने मूल से, अपने संबंधों से, अपने मूल्यों से — ही असली जीवन है। केवल बाहरी ताज़गी कुछ समय तक टिकती है, पर असली जीवन वही है जहाँ गहराई से संबंध बना हो।”

नीति : “जुड़ाव में ही जीवन का सार है — जो मूल से कट जाता है, वह धीरे-धीरे मर जाता है।”
         “सच्चा जीवन वही है, जो अपने जड़ों से जुड़ा रहे।”