धागा और तलवार

धागा और तलवार

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एक दिन सम्राट अकबर दरबार में बैठे विचार कर रहे थे। उन्होंने सभी दरबारियों की ओर देखा और पूछा:

“बताओ, क्या तलवार सबसे बड़ी शक्ति है? या कोई और चीज़ उससे भी ज़्यादा प्रभावशाली हो सकती है?”

कुछ दरबारियों ने जवाब दिया:
“जहाँपनाह, तलवार ही असली शक्ति है — वह युद्ध जीतती है, डर पैदा करती है, और दुश्मनों को मिटा देती है।”

दूसरे बोले:
“तलवार ही शासक की पहचान है। बिना तलवार के कोई साम्राज्य नहीं टिक सकता।”

अकबर ने बीरबल की ओर देखा और कहा,
“और तुम्हारी राय क्या है, बीरबल? क्या तुम भी यही मानते हो कि तलवार सबसे ताक़तवर है?”

बीरबल मुस्कराए और धीरे से उठे। उन्होंने पास पड़ी एक पतली रेशम की डोरी ली — लगभग धागे जितनी महीन।
फिर वह चले गए और सम्राट की म्यान (तलवार रखने का खोल) में रखी तलवार को उसी धागे से हल्के से बाँध दिया।
सब लोग उत्सुकता से देखने लगे।

बीरबल बोले:
“जहाँपनाह, यह आपकी तलवार है — तेज़, चमकदार और शक्तिशाली। लेकिन देखिए, यह अब बाहर नहीं निकल सकती क्योंकि एक साधारण सा धागा उसे बाँध चुका है।”

अकबर मुस्कराए और बोले:
“यह तो कमाल है! तुमने बिना बल के मेरी तलवार को रोक दिया।”

बीरबल ने सिर झुकाकर उत्तर दिया:
“जहाँ तलवार का काम बल और भय से होता है, वहाँ बुद्धिमत्ता बिना शोर के काम कर जाती है। कोमलता, समझदारी और धैर्य वह कर सकते हैं जो बल और क्रोध कभी नहीं कर सकते।”

दरबार में तालियाँ गूंज उठीं।

नीति : “कोमल बुद्धि वह कर सकती है जो कठोर बल नहीं कर सकता।”
          “हर समस्या का हल तलवार नहीं — कभी-कभी एक धागा भी काफी होता है।”