
टूटा हुआ प्याला

एक दिन की बात है। महल में काम करते समय एक सेवक से गलती से सम्राट अकबर का कीमती चाय का प्याला गिर गया। प्याला जमीन पर गिरते ही दरार पड़ गई, लेकिन पूरी तरह टूटा नहीं।
सेवक डर गया। उसने सोचा कि अगर अकबर को पता चला, तो उसे सज़ा मिल सकती है।
उसने एक तरकीब निकाली — उसने दरार पर चमकदार पालिश लगाई, ताकि वह दिखे नहीं। बाहर से प्याला लगभग नया जैसा दिखने लगा, लेकिन भीतर की दरार वैसी ही बनी रही।
कुछ समय बाद बीरबल महल में आए और उसी प्याले में पानी पीने लगे। उन्होंने जैसे ही उसे उठाया, प्याला हाथ में हिला और पानी टपकने लगा।
बीरबल ने ध्यान से देखा और समझ गए कि प्याले में पहले से दरार थी — और उसे सिर्फ़ छिपाया गया था।
उन्होंने मुस्कुराते हुए सेवक से कहा,
"कमज़ोरियाँ अगर छिपाई जाएँ, तो वे ठीक नहीं होतीं — वे तो बस टूटने के लिए समय ले रही होती हैं।"
सेवक डर के मारे काँपने लगा और सच स्वीकार कर लिया।
बीरबल ने अकबर को सारी बात बताई।
अकबर ने सेवक को सज़ा देने की बजाय कहा,
"सच को छुपाने से गलती मिटती नहीं, लेकिन सच बोलने से मन हल्का होता है।"
और उन्होंने सेवक को माफ़ कर दिया।
नीति: गलतियों को छिपाने से वे मिटती नहीं, बल्कि और गहरी हो जाती हैं।
गलती स्वीकार कर लेना ही सीखने और सुधरने की पहली सीढ़ी है।