चुराया गया घंटा

चुराया गया घंटा

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दरबार में एक दिन समाज सेवा पर चर्चा चल रही थी।
अकबर ने दरबारियों से पूछा:
“हमारे राज्य में बहुत से गरीब और ज़रूरतमंद हैं — आप में से कौन समय निकालकर उनकी सहायता करता है?”

कुछ दरबारियों ने सर झुका लिया, और कुछ ने बहाने बनाए।

एक धनी दरबारी आगे बढ़ा और बोला:
“जहाँपनाह, मैं दिनभर प्रशासन, व्यापार और महल के कार्यों में व्यस्त रहता हूँ।
मेरे पास गरीबों के लिए समय नहीं है। अगर मेरे पास एक घंटा और होता, तो शायद कर पाता।”

अकबर ने बीरबल की ओर देखा।

बीरबल मुस्कराए। उन्होंने धीरे-धीरे दरबार के कोने से एक रेतघड़ी (hourglass) मँगवाई और उसे उस दरबारी के सामने रख दिया।

फिर उन्होंने रेतघड़ी को उलटा घुमा दिया — अब रेत ऊपर से नीचे की बजाय नीचे से ऊपर चढ़ती दिख रही थी।

दरबारी चौंककर बोला:
“यह तो उलटी चल रही है!”

बीरबल ने गंभीरता से उत्तर दिया:

“ठीक वैसे ही जैसे तुम सोचते हो — तुम मानते हो कि समय तुम्हारे पास नहीं है, जैसे किसी ने तुम्हारा वह घंटा चुरा लिया हो।
लेकिन समय चुराया नहीं जाता — इसे हम खुद दूसरों से छीन लेते हैं, अपने लालच, अहंकार और सुविधा के नाम पर।”

उन्होंने आगे कहा:

“अगर तुम अपने समय का थोड़ा-सा अंश भी सही दिशा में लगाओ — तो वह एक घंटे जितना मूल्यवान बन सकता है।
समय सबसे बड़ा दान है — और सबसे सच्चा भी।”

अकबर ने सिर हिलाते हुए कहा:
**“बीरबल, आज तुमने हम सबको बताया कि समय देना ही सबसे बड़ा सेवा देना है।”

अकबर ने आदेश दिया कि हर दरबारी सप्ताह में कम-से-कम एक घंटा जनसेवा में लगाए, और महल के कर्मचारियों को भी यही सिखाया जाए।

नीति : “समय सबसे बड़ी दौलत है — इसे जहाँ ज़रूरत हो, वहाँ खर्च करें।”
          “गरीबों को दिया गया समय, सबसे अमीर कर्म होता है।”