
रानी का दर्पण

एक दिन, महारानी जोधाबाई को एक अद्वितीय कांच का दर्पण तोहफ़े में मिला — जिसकी फ्रेम सोने की थी और किनारों पर मोतियों की जड़ाई।
वह दर्पण इतना स्वच्छ और चमकदार था कि उसका प्रतिबिंब मानो जीवंत प्रतीत होता।
वह उस दर्पण को लेकर बहुत प्रसन्न हुईं और सोचने लगीं — "यह दर्पण सुंदरता दिखाता है, पर क्या यह केवल बाहरी सुंदरता तक ही सीमित है?"
दूसरे दिन जब बीरबल दरबार में आए, रानी ने उन्हें बुलाया और दर्पण दिखाते हुए मुस्कराकर पूछा:
“बीरबल, इस दर्पण में तुम क्या देखते हो?”
बीरबल ने एक क्षण के लिए उस दर्पण में झाँका —
फिर रानी की ओर देखा और बड़ी विनम्रता से बोले:
“मैं इस दर्पण में सिर्फ़ एक चेहरा नहीं देखता, महारानी —
मैं देखता हूँ एक ऐसा दिल, जो सौंदर्य से नहीं, करुणा, सहानुभूति और न्याय से चमकता है।
एक ऐसा दिल, जो पूरे महल को सहेजता है — जो कभी कठोर नहीं, बस मजबूत है।
एक ऐसा हृदय, जो सिंहासन से भी बड़ा राज करता है — प्रेम और समझ के बल पर।”
रानी थोड़ी देर शांत रहीं, फिर मुस्कराईं और भावुक हो गईं।
उन्होंने वह दर्पण बीरबल को सौंपते हुए कहा:
“जिसने भीतर की सुंदरता को देखा, वह ही इसका सच्चा अधिकारी है।”
बीरबल ने आदरपूर्वक मना किया और कहा:
“यह दर्पण रानी के पास ही शोभा देता है — क्योंकि इसमें जो प्रतिबिंब है, वह सच्चे सौंदर्य की पहचान बन चुका है।”
नीति : “सौंदर्य केवल चेहरे में नहीं होता — वह उस दिल में होता है, जो प्रेम, दया और समझ से भरा हो।”
“दर्पण चेहरा दिखाता है, पर असली पहचान दिल की अच्छाई से होती है।”