
गुमशुदा परछाईं

एक दिन शाही दरबार में एक चोर को पेश किया गया।
उस पर आरोप था कि उसने रात के अंधेरे में एक व्यापारी का सामान चुराया है।
जब सम्राट अकबर ने उससे पूछा,
“क्या तुम उस समय घटनास्थल पर मौजूद थे?”
चोर ने चालाकी से जवाब दिया,
“नहीं हुज़ूर, मैं वहाँ नहीं था। अगर होता, तो मेरी परछाईं ज़रूर दिखती — पर किसी ने उसे नहीं देखा।”
पूरे दरबार में हलचल मच गई। कुछ दरबारी उसकी सफ़ाई पर हैरान हुए, कुछ मुस्कुरा दिए।
बीरबल ने उसकी बात गंभीरता से सुनी और मुस्कराकर बोले,
“बहुत सही! तो अब हम तुम्हारी परछाईं को सज़ा दे देते हैं — उसे ज़ंजीरों में बाँधकर जेल भेज देते हैं।”
सारे दरबारी ज़ोर से हँसने लगे।
अकबर भी हँसे और बोले, “बीरबल, तुम्हारी चतुराई फिर जीत गई!”
फिर अकबर चोर से बोले,
“कानून छाया पर नहीं, कर्म पर चलता है। तुम्हारे पाँव जहाँ गए, तुम्हारा अपराध भी वही गया।”
बीरबल ने जोड़ा,
“अंधेरे में चाहे परछाईं छुप जाए, पर अपराध का साया हमेशा साथ चलता है।”
चोर चुप हो गया और अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
नीति: अपने कर्मों से अंधेरे में भी नहीं बचा जा सकता।
सच चाहे जितना भी छुपे, उसका असर हमेशा दिखाई देता है।