खाली थाली

खाली थाली

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एक दिन सम्राट अकबर दरबार में चर्चा कर रहे थे कि कैसे राजाओं को प्रजा के दुख-दर्द को समझना चाहिए।
उन्होंने कहा,
“मैं जानना चाहता हूँ कि भूख कैसी लगती है — ताकि मैं गरीबों के जीवन का अनुभव कर सकूँ।”

सभी दरबारी चुप थे, लेकिन बीरबल ने सहमति में सिर हिलाया।

अकबर ने घोषणा की,
“मैं एक दिन का उपवास रखूँगा — न कुछ खाऊँगा, न पिऊँगा। शाम को मैं यह अनुभव बाँटूँगा।”

पूरा महल हैरान था, लेकिन किसी ने विरोध नहीं किया।

अकबर ने पूरे दिन कुछ नहीं खाया। शाम होते-होते उन्हें तेज़ भूख लगने लगी।
उन्होंने आदेश दिया कि शाही रसोई से उनका उपवास तोड़ने के लिए भोज लाया जाए — स्वादिष्ट व्यंजन, मिठाइयाँ, फल आदि।

जब थाली लगाई गई, तो सब दरबारी ध्यान से देख रहे थे।
पर अचानक बीरबल ने चुपचाप आकर सम्राट के सामने से भोज की थाली हटाई… और एक बिल्कुल खाली थाली उनके सामने रख दी।

अकबर ने चौंककर पूछा,
“बीरबल! यह क्या कर रहे हो? मैंने दिन भर कुछ नहीं खाया — और अब उपवास तोड़ना चाहता हूँ।”

बीरबल झुके और धीरे से बोले,
“जहाँपनाह, आपने आज भूख को सहा — लेकिन यह केवल राजसी भूख थी। अब आप जानिए उस भूख का असली रूप, जब किसी गरीब के पास उपवास तोड़ने के लिए कुछ भी नहीं होता।”

दरबार में सन्नाटा छा गया।

बीरबल ने आगे कहा,
**“सिर्फ एक दिन का उपवास करने से भूख का अनुभव अधूरा रह जाता है। जब कोई भूखा सोता है, और अगली सुबह भी बिना भोजन के उठता है — तब उसे भूख का असली चेहरा दिखता है।”
“उसकी थाली भी अक्सर ऐसी ही खाली होती है।”

अकबर गहराई से सोच में पड़ गए। उन्होंने अपने भोजन को पीछे हटा दिया और आदेश दिया कि महल की रसोई में उस रात अतिरिक्त भोजन तैयार कर गरीबों में बाँटा जाए।

नीति : “अनुभूति वहीं से आती है, जहाँ हम दूसरों की असल ज़िंदगी को जीते हैं।”
          “भूख को समझना किताबों से नहीं — खाली थाली से आता है।”