
अदृश्य उपहार

एक दिन सम्राट अकबर ने दरबार में एक अनोखी प्रतियोगिता की घोषणा की।
उन्होंने सभी दरबारियों से कहा:
“कल हर कोई मेरे पास एक ऐसा उपहार लेकर आए,
जो दिखाई न दे, लेकिन फिर भी सबसे मूल्यवान हो।”
यह सुनकर दरबार में चर्चा और उलझन फैल गई।
कोई सोचने लगा कि वह सुगंध लाएगा, कोई हवा या संगीत।
अगले दिन सभी कुछ अनोखा लेकर दरबार पहुँचे:
एक ने शुद्ध हवा को एक जार में बंद कर लाया,
दूसरा एक शीशी में सुगंध,
तीसरा संगीत की स्वर लहरियों को प्रस्तुत करने आया।
हर कोई सोच रहा था कि उसने सबसे अनोखा और अदृश्य उपहार दिया है।
तब बीरबल आए — खाली हाथ।
अकबर ने चौंककर पूछा:
“बीरबल, तुम कुछ लाए नहीं? यह प्रतियोगिता का अपमान है!”
बीरबल झुके और मुस्कराकर बोले:
“जहाँपनाह, मैं तीन सबसे मूल्यवान उपहार लेकर आया हूँ:
आपकी प्रजा के प्रति मेरी वफ़ादारी,
आपके लिए मेरा प्रेम,
और आपकी न्यायप्रियता में मेरी आस्था।”
“ये तीनों चीज़ें न तो जार में बंद होती हैं, न शीशियों में,
पर इनका मूल्य किसी ख़ज़ाने से कम नहीं।”
दरबार में एकदम सन्नाटा छा गया।
अकबर की आँखों में चमक थी। वे गहराई से बोले:
“बीरबल, तुमने सिखा दिया कि
सबसे बड़ा उपहार वो होता है जो नज़र न आए, पर आत्मा को छू जाए।”
नीति : “सच्चे उपहार आँखों से नहीं, दिल से देखे जाते हैं।”
“प्रेम, विश्वास और निष्ठा — ये अदृश्य हैं, पर सबसे अमूल्य हैं।”