गूंजों से भरा घड़ा

गूंजों से भरा घड़ा

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एक दिन दरबार में सम्राट अकबर चिंतन  में थे।
उन्होंने सोचा, "मैं प्रतिदिन सैकड़ों निर्णय लेता हूँ, सैकड़ों बातें कहता हूँ —
पर क्या वे बातें सचमुच लोगों पर असर डालती हैं? क्या हर शब्द की कोई गूंज होती है?"

वहीं बैठे बीरबल ने उनके चेहरे की गहराई पढ़ ली।
वह चुपचाप उठे और एक बड़ा, खाली मिट्टी का घड़ा लेकर दरबार में आए।
उन्होंने अकबर से कहा:

“जहाँपनाह, मैंने इस घड़े में आपकी आवाज़ बंद कर दी है।”

अकबर चौंके।
“क्या मतलब? मैंने तो कुछ कहा ही नहीं।”

बीरबल ने मुस्कराकर घड़े का ढक्कन हटाया।
अंदर से कुछ नहीं निकला — बस शांति।

अकबर बोले,
“बीरबल, इसमें तो कुछ भी नहीं है।”

बीरबल ने सिर झुकाकर गंभीर स्वर में कहा:

“बिल्कुल वैसे ही, जैसे कई बार हम बोलते हैं —
पर लगता है जैसे कुछ नहीं कहा,
लेकिन उस 'कुछ नहीं' की भी अपनी गूंज होती है।

आपका एक आदेश किसी की ज़िंदगी बना या बिगाड़ सकता है।
आपका एक मौन, किसी के लिए अनुमति या इंकार बन सकता है।

इस घड़े में भले ही कुछ सुनाई न दे,
लेकिन यह बताता है कि आपका हर शब्द — बोले या न बोले —
दुनिया को प्रभावित करता है।”

अकबर ने गहरी साँस ली।
उन्हें एहसास हुआ कि राजा के शब्द केवल शब्द नहीं होते — वे दिशा, निर्णय और भविष्य बन जाते हैं।

नीति : “हर शब्द की अपनी गूंज होती है — चाहे वह मौन ही क्यों न हो।”
          “कभी-कभी जो नहीं कहा गया, उसकी भी गूंज दूर तक जाती है — इसलिए हर चुप्पी और हर बात ज़िम्मेदारी से होनी चाहिए।”