राजा का दर्पण

राजा का दर्पण

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सम्राट अकबर का हर दिन एक खास आदत से शुरू होता था — वे अपने राजसिंहासन पर बैठने से पहले, अपने बड़े दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखते थे, खासकर अपने राजमुकुट को। वे अपने पहनावे, आभूषण और मुकुट के तेज को निहारा करते थे।

बीरबल ने यह आदत लंबे समय से देखी थी। एक दिन उन्होंने सोचा, यह सही समय है सम्राट को एक छोटी-सी, पर जरूरी सीख देने का।

अगली सुबह, जब सम्राट जैसे ही अपनी आदत के अनुसार दर्पण के सामने पहुँचे, उन्होंने देखा कि वहाँ रखा दर्पण टूटा हुआ था। टुकड़ों में बँटा प्रतिबिंब देखकर अकबर चौंक उठे। वे क्रोधित हो उठे, “यह किसकी लापरवाही है?”

तभी बीरबल ने प्रवेश किया और हाथ जोड़कर बोले,
“जहाँपनाह, यह जानबूझकर किया गया है। मैं आपको यह दिखाना चाहता था कि जब तक राजा विनम्र होता है, तब तक उसका प्रतिबिंब सुंदर होता है।
मुकुट सिर पर हो या न हो, असली चमक उस सिर की सोच में होती है।
और टूटा दर्पण यह दिखाता है कि बाहरी सुंदरता भले ही चकनाचौंध करे, मगर सच्चाई और नम्रता ही वो शीशा है जिसमें असली आत्म-प्रतिबिंब दिखता है।”

अकबर गहराई से मुस्कुराए और बोले,
“बीरबल, एक टूटा दर्पण आज मुझे मेरी सबसे संपूर्ण तस्वीर दिखा गया।”

नीति: विनम्रता वह दर्पण है जो किसी राजा को भी सुंदर बनाता है।
        टूटा दर्पण अक्सर सच्चाई को सबसे साफ़ दिखाता है।