
मौन ढोल

दरबार में एक दिन एक व्यक्ति आया और बहुत ही अजीब सा दावा करने लगा।
उसने कहा,
“जहाँपनाह! मैं एक ऐसा ढोल बना सकता हूँ जो बिना कोई आवाज़ किए बजेगा — उसकी थाप इतनी गूंजदार होगी कि सब महसूस करेंगे, पर सुनाई कुछ नहीं देगा!”
सभी दरबारी उसकी बात सुनकर हैरान भी हुए और कुछ हँसने लगे।
सम्राट अकबर ने उत्सुक होकर पूछा,
“तो फिर तुम्हारा मौन ढोल कब तैयार होगा?”
व्यक्ति बोला, “बहुत जल्द, बस थोड़े संसाधन और कुछ पैसे चाहिए।”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए पास रखी एक खाली हांडी (बर्तन) उठाई और उसे व्यक्ति को दे दी।
फिर कहा,
“यह लो! यह रही तुम्हारी मौन ढोल। यह भी बिना आवाज़ के है। लेकिन ध्यान रहे — हर खाली चीज़ सबसे ज़्यादा शोर करती है, वो भी तब जब उसमें कुछ नहीं होता।”
दरबार में सब ज़ोर से हँस पड़े।
अकबर भी मुस्कुरा उठे और बोले,
“बीरबल, तुमने एक बार फिर साबित किया कि शब्दों से ज़्यादा असरदार कभी-कभी चुप्पी और व्यंग्य होता है।”
व्यक्ति शर्मिंदा होकर चुपचाप चला गया।
नीति: खाली दावे सबसे ज़्यादा गूंजते हैं, लेकिन असल में उनमें कोई सार नहीं होता।
सच्ची योग्यता को साबित करने की ज़रूरत नहीं पड़ती — उसे दिखाया जाता है, बताया नहीं।