
पंख और ईंट

एक शांत दोपहर को सम्राट अकबर गहरे विचारों में डूबे हुए थे।
वह मन के बोझ और हृदय की पीड़ा पर सोच रहे थे। उन्होंने दरबार में बैठे बीरबल से एक असामान्य प्रश्न किया:
“बीरबल, तुम्हारी दृष्टि में क्या अधिक भारी होता है —
दुःख में डूबा एक पंख, या अपराधबोध से भरी एक ईंट?”
दरबारी चकित रह गए।
पंख? और ईंट? यह तुलना कैसी?
बीरबल मुस्कराए, उन्होंने कुछ देर सोचा, फिर बोले:
“जहाँपनाह, दिखने में तो पंख हल्का है और ईंट भारी। लेकिन जब पंख भीगी आँखों में डूबा हो, और ईंट पश्चाताप से भर चुकी हो — तो दोनों ही एक समान बोझिल हो जाते हैं।"
"इनका भार किसी तराज़ू से नहीं, बल्कि हृदय से मापा जाता है।”
उन्होंने आगे समझाया:
“दुःख में डूबा पंख हवा में नहीं उड़ता — वह दिल में अटका रहता है।
और अपराधबोध की ईंट दिखाई नहीं देती — लेकिन भीतर से आदमी को कुचल देती है।”
"एक सच्चा सम्राट वही होता है जो अपने राज्य में लोगों के दिल के इन अदृश्य बोझों को समझे —
जो दिखते नहीं, पर सबसे ज़्यादा भारी होते हैं।”
अकबर कुछ क्षण चुप रहे, फिर बोले:
“तुमने सच कहा बीरबल — यह दुनिया भौतिक भार से नहीं, भावनात्मक पीड़ा से अधिक दबती है।”
उन्होंने उसी दिन आदेश दिया कि राज्य के चिकित्सकों के साथ-साथ ऐसे विद्वानों की टोली बनाई जाए जो जनता के मानसिक और भावनात्मक सुख-दुख को भी समझे और समाधान करे।
नीति : “भावनात्मक बोझ, जैसे दुःख और अपराधबोध — वह भार है जो दिखाई नहीं देता, लेकिन सबसे गहरा होता है।”
“हृदय का दर्द कभी हल्का नहीं होता — चाहे वह पंख जितना हो या ईंट जितना।”