घड़े में बारिश

घड़े में बारिश

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एक दिन गर्मी बहुत ज़्यादा थी, और राजमहल के बाग़ सूखने लगे थे। नदियाँ सिकुड़ गई थीं और किसान परेशान थे।
सम्राट अकबर ने आकाश की ओर देखा और कहा,
“काश, अब बारिश हो जाए!”

थोड़ी देर बाद उन्होंने एक विचित्र आदेश दिया:
“महल के सामने एक खाली घड़ा रखा जाए। और दरबारियों से कहा जाए कि वे बारिश लाने का उपाय करें, ताकि यह घड़ा भर सके।”

अगले दिन दरबार लगा।
अकबर ने सभी दरबारियों से कहा:
“यह रहा घड़ा। तुम सब बुद्धिमान हो — कुछ ऐसा करो कि इसमें बारिश गिरे।”

कुछ दरबारी टोने-टोटके लेकर आए।
किसी ने मेघराज की पूजा की,
कोई वेद-मंत्र पढ़ने लगा।
किसी ने नृत्य और गीत गाया — सबने कुछ न कुछ कोशिश की।

सिर्फ बीरबल चुपचाप बैठे रहे, किसी प्रयास के बिना।

अकबर ने हैरानी से पूछा,
“बीरबल, तुम कुछ नहीं कर रहे? क्या तुम्हारे पास कोई उपाय नहीं?”

बीरबल शांति से बोले:
**“जहाँपनाह, मैंने उपाय करना छोड़ दिया — क्योंकि मैंने सीखा है कि कुछ चीज़ें ज़बरदस्ती नहीं लाई जा सकतीं।
बारिश एक ऐसी शक्ति है, जो समय के साथ आती है — चाहे हम कुछ भी कर लें, वह अपने तय समय पर ही बरसेगी।”

अकबर थोड़ा असहमत दिखे, लेकिन बोले कुछ नहीं।

अगली सुबह बादल घिरे, और जोरदार बारिश हुई।
वही घड़ा जो कल तक खाली था, अब पानी से भर चुका था।

अकबर ने बीरबल को देखा और मुस्कराए।
“तुम फिर सही साबित हुए, बीरबल।”

बीरबल बोले:
“जहाँपनाह, हर चीज़ को कर्म, तर्क या प्रयास से नहीं पाया जा सकता।
कुछ चीज़ें प्रकृति और समय की देन होती हैं — उन्हें धैर्य से ही पाया जा सकता है।”

नीति : “कुछ चीज़ें हमारे बस में नहीं होतीं — वे अपने समय पर ही घटती हैं।”
          “धैर्य से जो मिलता है, वह सबसे स्थायी होता है।”