हवा की टोकरी

हवा की टोकरी

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एक दिन दरबार में एक अजीब आदमी आया। उसने घमंड से कहा,
“जहाँपनाह, मैं हवा को टोकरी में बंद कर सकता हूँ।”

पूरे दरबार में फुसफुसाहट होने लगी।
कुछ दरबारी हँसने लगे, कुछ आश्चर्यचकित हो गए।
अकबर ने कहा, “यदि यह सच है, तो यह बड़ा कमाल होगा! क्या तुम इसे साबित कर सकते हो?”

वह व्यक्ति मुस्कुराया और एक खाली टोकरी लेकर खड़ा हो गया।
उसने उसे आकाश की ओर उठाया और फिर जल्दी से ढक्कन बंद कर दिया।

“अब इसमें हवा बंद है!” उसने घोषणा की।

अकबर कुछ कहने ही वाले थे कि बीरबल आगे बढ़े और बोले,
“बहुत अच्छा! तो अब मैं तुम्हें एक और आसान कार्य देता हूँ।”

उन्होंने उसे एक और ढक्कन थमाया और कहा,
“इस बार अपनी साँस अंदर लेकर उसे इस ढक्कन में बंद कर दो — और जब हम कहें, तब उसे खोलो।”

वह आदमी घबरा गया।
बीरबल मुस्कराए, “यदि अपनी ही साँस नहीं पकड़ सकते, तो हवा को कैसे पकड़ोगे?
प्रकृति को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता — और न ही लोगों को।”

अकबर और दरबार में ठहाका गूंज गया।

नीति: जो प्रकृति की मर्यादा को न समझे, उसके वादे खोखले होते हैं।
        असंभव का दावा, मूर्खता का प्रमाण होता है।