स्वर्ण की सीढ़ी

स्वर्ण की सीढ़ी

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एक सुबह सम्राट अकबर काफी सोच में डूबे हुए दरबार में आए। उनके चेहरे पर एक विचित्र सी शांति और जिज्ञासा थी।
बीरबल ने देखा कि सम्राट कुछ कहना चाहते हैं।

अकबर बोले,
“बीरबल, आज रात मैंने एक सपना देखा — मैं एक सोने की सीढ़ी चढ़ रहा था… और वो मुझे स्वर्ग की ओर ले जा रही थी। हर पायदान चमकदार था, और मैं ऊपर, और ऊपर चढ़ता जा रहा था।”

“मैंने वहाँ शांति, रौशनी और संगीत महसूस किया। क्या यह कोई संकेत है?”

बीरबल मुस्कराए और बोले,
“जहाँपनाह, सपने कभी-कभी हमारे मन की गहराई से आते हैं। लेकिन असली सवाल यह है — क्या आप उस सीढ़ी पर चढ़ना जारी रखना चाहेंगे, जब आप जाग गए हैं?”

अकबर चकित होकर बोले,
“जागते हुए? लेकिन वह तो सिर्फ़ एक सपना था।”

बीरबल गंभीर हो गए। उन्होंने कहा:

“हर व्यक्ति अपने जीवन में स्वर्ण की सीढ़ी देखता है — पर वह सपना तभी सच्चाई बनता है, जब हम उसे कर्मों से बनाते हैं।”

“अगर आप सचमुच स्वर्ग की ओर चढ़ना चाहते हैं, तो आपको रोज़ दया का एक पायदान चढ़ना होगा,
ईमानदारी से एक और पायदान जोड़ना होगा,
ज्ञान से उसे मजबूत बनाना होगा,
और न्याय से उसे स्थिर बनाना होगा।”

“स्वर्ग ऊपर कहीं नहीं — वह आपके कर्मों की ऊँचाई में है।”

दरबार में मौन था, लेकिन हर दरबारी के चेहरे पर एक नई जागरूकता दिखाई दे रही थी।

अकबर ने मुस्कराते हुए कहा,
“बीरबल, आज से मैं अपने हर निर्णय से उस स्वर्ण की सीढ़ी को सच करूँगा।”

नीति : “स्वर्ग कोई जगह नहीं, बल्कि अच्छे कर्मों से बनी एक यात्रा है।”
          “दया, ईमानदारी और ज्ञान से बनी सीढ़ी ही आपको सबसे ऊँचा स्थान देती है।”