
सोने की आवाज़

एक दिन, शाही रसोई के पास एक ग़रीब आदमी दीवार के पास बैठा था और आँखें बंद करके रसोई से आ रही स्वादिष्ट पकवानों की खुशबू का आनंद ले रहा था।
वह भूखा था, पर उसके पास कुछ भी खाने को नहीं था।
उसे देखकर शाही रसोइया नाराज़ हो गया और बोला,
"अगर खाने की खुशबू से तृप्त हो रहे हो, तो इसका भुगतान भी करो!"
ग़रीब आदमी डर गया और दरबार में न्याय की गुहार लगाने पहुँच गया।
अकबर ने पूरी बात सुनी और खुद भी हैरान हुए।
“सिर्फ़ खुशबू लेने के लिए कोई भुगतान कैसे कर सकता है?” उन्होंने पूछा।
रसोइया अड़ा रहा कि खाना तो न सही, पर उसकी खुशबू भी मूल्यवान है।
बीरबल मुस्कुराए।
उन्होंने अपनी जेब से एक सोने का सिक्का निकाला और उसे रसोइए के कान के पास ले जाकर खनखनाया — पर उसे रसोइए को दिया नहीं।
रसोइया चौंक गया।
"आपने मुझे दिया ही क्या?" वह बोला।
बीरबल शांत स्वर में बोले:
"तुमने सिर्फ़ गंध से पेट भरवाया, और मैंने तुम्हें सिक्के की सिर्फ़ आवाज़ से भुगतान कर दिया। मामला बराबर हो गया।"
अकबर और दरबार ठहाके लगाकर हँस पड़े और बीरबल की न्यायपूर्ण चतुराई की सराहना की।
नीति: दावे का समाधान उसकी प्रकृति के अनुसार होना चाहिए — जैसा सवाल, वैसा जवाब।
न्याय हमेशा तर्क और संतुलन से किया जाना चाहिए।