साझा कंबल

साझा कंबल

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एक सर्द सुबह की बात है।
अकबर के दरबार के पास दो गरीब आदमी एक कंबल को लेकर जोर-जोर से झगड़ रहे थे।

पहला कह रहा था, “मैंने इसे पहले देखा! यह मेरा है।”
दूसरा बोला, “नहीं, मैंने इसे उठाया था। यह मेरा है!”

बहस इतनी बढ़ गई कि लोग इकट्ठा हो गए। बात सम्राट अकबर तक पहुँची।
उन्होंने बीरबल को बुलाया और कहा, “इस झगड़े को शांत करो और न्याय करो।”

बीरबल दोनों की बातें सुनने के बाद, चुपचाप एक कचरी लाए और कंबल को बीच से दो टुकड़ों में फाड़ दिया।
एक टुकड़ा पहले आदमी को दिया, दूसरा टुकड़ा दूसरे को।

दोनों आदमी अपने-अपने हिस्से को लेकर चले तो गए, लेकिन आधा कंबल उन्हें ठंड से बचाने के लिए नाकाफी था।
वे काँपते हुए रास्ते पर चलने लगे।

यह देखकर अकबर ने आश्चर्य से पूछा,
“बीरबल, तुमने कंबल क्यों फाड़ दिया? तुम दोनों में से किसी एक को पूरा क्यों नहीं दे सकते थे?”

बीरबल ने मुस्कराकर उत्तर दिया,
“जहाँपनाह, अगर इनमें से कोई सच में ज़रूरतमंद होता, तो वह इसे साझा करने को तैयार होता।
लेकिन यहाँ दोनों ने गरमाहट की बजाय लालच चुना।
अब दोनों को उसकी सज़ा भी बराबर मिली है — ठंड।”

अकबर बीरबल की समझदारी पर गहरे प्रभावित हुए।

नीति: लालच बाँटता है, गर्मी नहीं — और सभी को अंत में ठंड में छोड़ देता है।
        जो बाँटना नहीं जानते, वे कभी पूरी राहत नहीं पा सकते।