
सच का कटोरा

एक दिन सम्राट अकबर को यह विचार आया कि क्यों न अपने दरबार के मंत्रियों की ईमानदारी और ज़िम्मेदारी की परीक्षा ली जाए।
उन्होंने सभी मंत्रियों को आदेश दिया,
“आज रात महल के बाग़ में एक बड़ा खाली कटोरा रखा जाएगा। आप सभी दरबारियों को उसमें चुपचाप एक-एक गिलास दूध डालना है — बिना किसी को बताए।”
सभी ने सिर झुका कर आज्ञा स्वीकार कर ली। रात को, एक-एक कर सभी मंत्री कटोरे के पास गए और कुछ डालकर लौट आए।
सुबह जैसे ही दरबार लगा, अकबर ने सभी को बुलाया और कटोरे की ओर इशारा किया।
कटोरा पूरी तरह भरा हुआ था — लेकिन उसमें दूध की जगह सिर्फ़ पानी था।
अकबर मुस्कराए, पर मुस्कान में पीड़ा थी।
“हर किसी ने सोचा कि बाकी सब दूध डालेंगे, तो अगर मैं एक गिलास पानी डाल दूँ तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन जब सभी ने ऐसा ही सोचा, तो नतीजा ये हुआ कि पूरा कटोरा ही पानी से भर गया।”
बीरबल ने आगे कहा,
“जहाँपनाह, जब ज़िम्मेदारी सबकी होती है, लेकिन हर कोई उसे दूसरों पर छोड़ देता है, तो नतीजा यही होता है — कोई भी अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं करता।”
दरबार में सन्नाटा छा गया। सभी मंत्रियों को अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस हुई।
उस दिन से, हर दरबारी को यह शिक्षा मिल गई कि छोटे-से-छोटा सही काम भी अगर हर व्यक्ति खुद करे, तो समाज में अच्छाई बढ़ती है।
नीति: जब हर कोई अच्छाई की उम्मीद दूसरों से करता है, तब अच्छाई होनी बंद हो जाती है।
ज़िम्मेदारी दूसरों के भरोसे नहीं, खुद निभाने से पूरी होती है।