बर्फ की बाल्टी

बर्फ की बाल्टी

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एक ठंडी सर्दियों की सुबह थी।
चारों ओर कोहरा फैला था और हवाओं में कंपकंपी थी। लेकिन महल के भीतर की स्थिति बिल्कुल विपरीत थी —
सम्राट अकबर गुस्से से तमतमाए बैठे थे।

एक दरबारी ने किसी महत्त्वपूर्ण कार्य में गलती कर दी थी, जिससे अकबर क्रोधित होकर सख़्त सज़ा देने जा रहे थे।
दरबार का वातावरण भारी था। किसी में कुछ कहने का साहस नहीं था।

तभी बीरबल दरबार में दाखिल हुए। उन्होंने स्थिति को भाँपा और बिना कुछ कहे महल के एक सेवक को बुलाया।

“जाओ और मेरे लिए बर्फ से भरी एक बाल्टी लाओ,” उन्होंने कहा।

सब चौंके — इस सर्द मौसम में बर्फ? वह भी बाल्टी भर?

सेवक बाल्टी लेकर आया, तो बीरबल उसे लेकर सीधे अकबर के पास गए और चुपचाप वह बाल्टी उनके सामने रख दी।

अकबर ने आश्चर्य से पूछा,
“यह क्या मज़ाक है, बीरबल?”

बीरबल ने शांत स्वर में उत्तर दिया:

“जहाँपनाह, यह बर्फ आपकी आँखों के लिए नहीं — आपके भीतर जल रही आग के लिए है।
जब तापमान बाहर का ठंडा हो, और भीतर का मन गर्म हो जाए — तो सज़ा से पहले शांत विचार ज़रूरी होता है।
कभी-कभी ठंडा आईना यानी शांत निर्णय, हमें वह जीत देता है जो ग़ुस्से में हार जाती है।”

अकबर बीरबल की बात पर थोड़ी देर चुप रहे। फिर उन्होंने गहरी साँस ली और मुस्कराए।

“बीरबल, तुम्हारी यह बर्फ, मेरे ग़ुस्से से कहीं ज़्यादा बुद्धिमान है।”

उस दिन उन्होंने उस दरबारी को सज़ा देने की बजाय उसे सुधार का मौका दिया।

नीति : “ग़ुस्से में लिए गए निर्णय अक्सर पछतावे में बदल जाते हैं — ठंडा दिमाग़ वही करता है जो सही होता है।”
          “जो ग़ुस्से पर काबू पा ले, वही सच्चा विजेता होता है।”