
नमक का चम्मच

एक दिन अकबर के महल में एक विद्वान अतिथि आमंत्रित किया गया था।
दरबार में विचार-विमर्श के बाद सभी अतिथियों को राजसी भोजन परोसा गया।
भोजन परंपरा अनुसार कई व्यंजनों से सजा हुआ था — लेकिन उस विद्वान ने पहला कौर लेते ही चेहरा थोड़ा सिकोड़ लिया।
वह बोला:
“इस भोजन में स्वाद की कमी है। कुछ नमक कम है शायद। इतने बड़े महल में इतना असंतुलित भोजन?”
अकबर ने रसोइये को घूरा और कुछ कहने ही वाले थे कि बीरबल मुस्कराए और बीच में बोल पड़े:
“जहाँपनाह, क्षमा करें — क्या मैं इस समस्या का समाधान कर सकता हूँ?”
बीरबल रसोई में गए और एक चम्मच में थोड़ा सा नमक लेकर वापस आए।
उन्होंने वह चम्मच अतिथि की ओर बढ़ाया और कहा:
“लीजिए, यह है नमक — आप इसे जितना चाहें, अपने स्वाद अनुसार डाल सकते हैं।”
अतिथि ने हिचकते हुए पूछा:
“लेकिन सिर्फ नमक से क्या स्वाद ठीक होगा?”
बीरबल गंभीरता से बोले:
“सिर्फ नमक खाने से क्या स्वाद अच्छा लगेगा?”
“नहीं,” अतिथि बोला।
“तो क्या बिना नमक के भोजन अधूरा लगता है?”
“हाँ,” अतिथि ने कहा।
बीरबल अब मुस्कराए:
“बस, यही बात समझदारी, सत्य, और व्यवहार पर भी लागू होती है।
कम हो तो अधूरी लगती है,
ज़्यादा हो जाए तो कड़वी बन जाती है।
हर चीज़ — चाहे वह नमक हो, ज्ञान हो, या सच — तभी उपयोगी है जब उसमें संतुलन हो।”
अकबर ने सिर हिलाते हुए कहा:
“बीरबल, तुमने फिर एक साधारण चीज़ से जीवन का बड़ा पाठ पढ़ा दिया।”
नीति : “संतुलन हर चीज़ में ज़रूरी है — चाहे वह नमक हो, सच हो या व्यवहार।”
“बुद्धिमानी वही है जो किसी भी चीज़ को उसकी सही मात्रा में इस्तेमाल करना जानती है।”